कैसे ऑनलाइन शिक्षा ने पारंपरिक शिक्षा के स्वरूप को नया आकार दिया

कैसे ऑनलाइन शिक्षा ने पारंपरिक शिक्षा के स्वरूप को नया आकार दिया

शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है। शिक्षा किसी भी समाज की नींव होती है। शिक्षा के बिना मनुष्य ऐसे है जैसे पक्षी बिना पंख के, सोच सकते है पक्षी बिना पंख के किस दशा में होता है। ठीक इसी प्रकार हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र से अछूता न रखें, उन्हें हर संभव कोशिश कर शिक्षा प्राप्त करवाने में उनकी मदद करें।  समय के साथ-साथ तकनीकी प्रगति ने जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है, और शिक्षा इससे अछूती नहीं रही। विशेष रूप से 21वीं शताब्दी के दूसरे दशक में, ऑनलाइन शिक्षा ने पारंपरिक शिक्षा के स्वरूप को एक नई दिशा दी है।

जहाँ एक समय विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय ही शिक्षा प्राप्त करने का एकमात्र माध्यम थे, वहीं अब इंटरनेट आधारित शिक्षा प्रणाली ने इन सीमाओं को तोड़ दिया है। विशेष रूप से COVID-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा ने एक क्रांति का रूप ले लिया, जिसने शिक्षा के स्वरूप और संरचना को ही बदल दिया। बच्चों को शिक्षा के महत्व को समझाते हुए, ये बात भी ध्यान दिलाना चाहिए कि ऑनलाइन शिक्षा के दौरान हमें सिर्फ हमारे लक्ष्य पर ध्यान देना है।

स्मार्ट युग में बच्चे कुछ ज्यादा ही स्मार्ट होते जा रहे हैं, इसके लिए उन्हें इंटरनेट सेवाओं का लाभ लेते समय उससे होने वाली हानियों के बारे में भी बताते रहना चाहिए ताकि वह उसका दुरुपयोग न करें।

मुख्य बिंदु:

(1) शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है। शिक्षा किसी भी समाज की नींव होती है।

(2)समय अनुसार तकनीकी प्रगति ने जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है, और शिक्षा इससे अछूती नहीं रही है।

(3)ऑनलाइन शिक्षा ने पारंपरिक शिक्षा के स्वरूप को एक नई दिशा प्रदान की है।

(4)कोविड – 19 महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा ने एक क्रांति का रूप ले लिया है।

(5) बच्चे अब घर बैठे शिक्षा प्राप्त कर अपना समय और धन की बचत कर सकते हैं।

(6) ऑनलाइन शिक्षा के कारण अब बच्चे अपने अनुसार पढ़ सकते हैं।

(7) ऑनलाइन शिक्षा के साथ व्यक्तिगत संपर्क में बहुत बड़ी कमी दिखाई देती है।

(8) आध्यात्मिक शिक्षा के बिना मनुष्य जीवन व्यर्थ है।

ऑनलाइन शिक्षा का विकास कैसे हुआ है ?

ऑनलाइन शिक्षा का इतिहास कुछ नया नहीं है, लेकिन इसका प्रयोग पहले सीमित था। लोग इंटरनेट तो दूर मोबाइल फोन के बारे में भी बहुत कम जानकारी रखते थे। 1990 के दशक में इंटरनेट के आगमन के साथ ही ऑनलाइन पाठ्यक्रम अस्तित्व में आए, लेकिन यह केवल उच्च शिक्षा और तकनीकी पाठ्यक्रमों तक ही सीमित था। जैसे-जैसे इंटरनेट की पहुँच बढ़ी और स्मार्टफोन व डिजिटल उपकरण आम हुए, वैसे-वैसे ऑनलाइन शिक्षा भी जनसामान्य तक पहुँचने लगी। भारत जैसे विकासशील देश में भी सरकार और निजी संस्थानों द्वारा डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म (जैसे SWAYAM, DIKSHA, PMeVidya, NPTEL, BYJU’s, Unacademy आदि) का विकास किया गया। इन सभी डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म पर विद्यार्थीगण विषय की पूर्णतः जानकारी प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं। ऑनलाइन पद्धति के माध्यम से न पढ़ने वाले बच्चों में पढ़ाई की ओर थोड़ा आकर्षण बड़ा और पढ़ने में रुचि भी जागती सी दिखाई दी। कोविड-19 के समय ऑनलाइन शिक्षा के विकास में बहुत तेजी से प्रगति हुई और आज प्रत्येक बच्चा स्मार्ट किड बन गया है। ज्यादातर अब लगभग सभी स्कूलों में ऑनलाइन पद्धति के माध्यम से कक्षाएं संचालित की जाती हैं।

पारंपरिक शिक्षा बनाम ऑनलाइन शिक्षा

  • सुदूर पहुँच  

आपको बता दें कि पारंपरिक शिक्षा में भौगोलिक सीमाएँ होती हैं। छात्रों को विद्यालय या महाविद्यालय जाना होता है। वहीं ऑनलाइन शिक्षा ने इन सीमाओं को समाप्त कर दिया है। अब कोई भी छात्र देश-विदेश के किसी भी कोने से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकता है। ऑनलाइन पद्धति ने बच्चों को घर बैठे शिक्षा प्राप्त करने में मदद की है। शिक्षा अब बच्चों की पहुंच से दूर नहीं है।

  • लचीलापन 

अब बच्चों को समय की चिंता नहीं करनी पड़ती है। ऑनलाइन शिक्षा समय और स्थान की पाबंदी को खत्म करती है। छात्र अपने समय अनुसार अध्ययन कर सकते हैं, जिससे कार्यरत लोग भी शिक्षा जारी रख सकते हैं। शिक्षा अब अपने समय अनुसार भी की जा सकती है। ऐसा भी नहीं है कि हमें ऑनलाइन समय के अनुसार आना होगा, रिकॉर्डेड स्कीम के माध्यम से हम हमारी कक्षाएं फिर से ले सकते हैं। 

  • शिक्षण विधियाँ

स्मार्ट युग से पहले बच्चों को शिक्षा व्याख्यान आधारित ही प्राप्त करना होता था। इससे बच्चों में पढ़ने में उतनी रुचि भी नहीं देखी जाती थी। पारंपरिक कक्षा शिक्षण में आमतौर पर व्याख्यान आधारित विधियाँ होती हैं, जबकि ऑनलाइन शिक्षा में वीडियो, एनिमेशन, क्विज़, इंटरएक्टिव कंटेंट आदि के माध्यम से शिक्षण अधिक रोचक और प्रभावशाली बन गया है।

  •  शिक्षक-छात्र संबंध

पारंपरिक शिक्षा में शिक्षक और छात्र के बीच सीधा संवाद होता है, जिससे शंका समाधान अधिक प्रभावी होता है। जबकि ऑनलाइन शिक्षा में यह संवाद सीमित होता है, हालांकि वर्चुअल कक्षाओं और चैट सिस्टम के माध्यम से इस कमी को दूर किया जा रहा है। दूसरी ओर देखा जाए तो बच्चे अब इंटरनेट का उपयोग कर खुद ही अपनी शंकाओं का समाधान कर लेते हैं। शिक्षा के हर क्षेत्र से संबंधित जानकारी, वो भी विस्तार में इंटरनेट पर उपलब्ध है।

ऑनलाइन शिक्षा से होने वाले लाभ :

(1) ऑनलाइन शिक्षा पद्धति के माध्यम से समय और धन की बचत होती है। यात्रा और रहने के खर्च में कटौती होती है। बच्चे और उनके माता – पिता को एक दूसरे से दूर भी नहीं होना पड़ता है।

(2) व्यक्तिगत गति से भी बच्चे स्वयं सीख सकते हैं। पढ़ने वाले बच्चे अब अपनी समझ के अनुसार पाठ्यक्रम को दोहराकर सीख सकते हैं।

(3) ग्लोबल लर्निंग हुई अब आसान क्योंकि अब पढ़ाई के लिए देश छोड़ने की जरूरत नहीं है क्योंकि ऑनलाइन पद्धति से विदेशी विश्वविद्यालयों से कोर्स करना संभव है।

(4) तकनीकी दक्षता में बहुत तेजी से वृद्धि हो रही है। अब  छात्र और शिक्षक दोनों तकनीकी उपकरणों के प्रयोग में निपुण हो रहे हैं।

(5) आपातकालीन स्थिति में बहुत प्रभावी और लाभदायक है क्योंकि ऑनलाइन पद्धति के माध्यम से COVID-19 जैसे संकट में शिक्षा बाधित नहीं हुई।घर बैठे बच्चों ने अपनी कक्षाएं जारी रखीं और पढ़ने में बहुत रुचि भी दिखाई।

ऑनलाइन शिक्षा के दौरान कुछ चुनौतियाँ  

▪️ इंटरनेट और उपकरणों की पहुँच कहीं – कहीं सीमित है। ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए बहुत बड़ी बाधा है।

 ▪️ व्यक्तिगत संपर्क में बहुत बड़ी कमी है। शारीरिक कक्षाओं से मिलने वाला सामाजिक और भावनात्मक विकास प्रभावित होता है।

▪️ ऑनलाइन शिक्षा के दौरान एकाग्रता की कमी का भी सामना करना पड़ता है। घर के वातावरण में ध्यान भटकने की संभावना अधिक होती है।

▪️तकनीकी समस्याएँ भी पढ़ाई के दौरान ध्यान केंद्रित नहीं होने देती हैं । नेटवर्क बाधा, सॉफ्टवेयर की समस्याएँ भी झेलनी पड़ती हैं। इससे बच्चों को बार – बार ध्यान को केंद्रित करना पड़ता है।

▪️ मूल्यांकन की कठिनाई भी रहती है। परीक्षा और मूल्यांकन प्रणाली की विश्वसनीयता एक प्रश्न बनी रहती है। किसी को विश्वास होता है तो कोई शंका कर मूल्यांकन को गलत ठहरा देता है।

पारंपरिक शिक्षा में कुछ परिवर्तन हुए हैं 

ऑनलाइन शिक्षा के प्रभाव ने पारंपरिक शिक्षा पद्धति को भी बदल दिया है। अब विद्यालय और कॉलेज भी डिजिटल टूल्स, स्मार्ट क्लासरूम, ई-लर्निंग पोर्टल और हाइब्रिड शिक्षण प्रणाली को अपना रहे हैं। शिक्षक अब केवल पठन-पाठन तक सीमित नहीं, बल्कि वे डिजिटल सामग्री निर्माता, मार्गदर्शक और मेंटर की भूमिका निभा रहे हैं।

बच्चों को अपना कार्य स्मार्ट क्लास के माध्यम से दर्शाने में बहुत खुशी होती है और आगे और बेहतर करने की लालसा बढ़ जाती है। पहले तो शिक्षकगण भी आलस्य दर्शाते दिखते थे लेकिन अब वर्तमान में शिक्षकगण भी बहुत रूसी और उल्लास के साथ शिक्षा प्रदान करते हैं।

भविष्य की शिक्षा: एक समन्वित दृष्टिकोण

ऑनलाइन और पारंपरिक शिक्षा में अब धीरे धीरे संतुलन होता जाएगा और आगे दोनों का समावेश होकर बच्चों को और बेहतर शिक्षा प्रदान की जा सकेगी। शिक्षा का भविष्य केवल ऑनलाइन या पारंपरिक नहीं होगा, बल्कि एक हाइब्रिड मॉडल होगा, जिसमें दोनों के श्रेष्ठ तत्वों का समावेश होगा। यह मॉडल छात्रों को गुणवत्तापूर्ण, लचीली, और सुलभ शिक्षा प्रदान करेगा। तकनीक के साथ मानवीय मूल्यों का संतुलन ही शिक्षा को सार्थक बना सकता है।

समय – समय पर विद्यार्थीगण ऑनलाइन पद्धति के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने दौरान होने वाले लाभ और हानि के बारे में भी जानकारी लेते रहें। इससे क्या होगा कि बच्चे अपने लक्ष्य को नहीं भूलते और समय से शिक्षा प्राप्त कर बहुत कुछ पा सकते हैं।

सार 

ऑनलाइन शिक्षा ने न केवल पारंपरिक शिक्षा के स्वरूप को नया आकार दिया है, बल्कि शिक्षा के मायनों को भी विस्तारित किया है। यह एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है, जिसने शिक्षा को लोकतांत्रिक और सार्वभौमिक बना दिया है। हालांकि इसके साथ कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जिन्हें नीति-निर्माताओं, शिक्षकों, छात्रों और समाज को मिलकर हल करना होगा। अंततः, शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि एक बेहतर समाज का निर्माण करना है – और यह उद्देश्य पारंपरिक और ऑनलाइन शिक्षा, दोनों के समन्वय से ही पूरा हो सकता है। इस लिए ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने के दौरान ध्यान रखें उन चुनौतियों का, जो हमे प्रभावित न कर सकें।

आध्यात्मिक शिक्षा के बिना मानव जन्म अधूरा 

हमारे मानवीय जीवन का उद्धार केवल आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत ही हो सकता है। मानव जीवन परमात्मा की असीम दया से प्राप्त होता है । जिसे हम मुफ्त में व्यर्थ कर जाते हैं । मनुष्य को हर क्षण अनेकों  परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है ,फिर भी नहीं समझ पाता है कि जीवन का क्या उद्देश्य है।

रात गँवाई सोय के, दिवस गँवाया खाय, 

हीरा जनम अनमोल था, कौड़ी बदले जाय |

 दुःख-दर्द-गरीबी-रोग-प्राकृतिक आपदाएं-लड़ाई (झगड़े) सबसे हर क्षण सामना करते करते अंत में हार मानना ही पड़ती है और मौत को गले लगाना ही पड़ता है ! इन सब परेशानियों का कारण है कि हमें आध्यत्मिक शिक्षा प्राप्त न होने के कारण जीवन जीने की कला और जीवन रूपी परीक्षा पास करना नहीं आ पा रहा है । इस लिए समय निकला जा रहा है हम भूल रहे है केवल परमात्मा की सद्भक्ति-सत्यज्ञान को जो हमें हर कठिन परीक्षा से पास कराके मोक्ष प्रदान करेगा। हम इस धरा पर बार बार जन्मते और मरते है फिर भी नहीं समझ पा रहे इस विकट जाल को ,इसका कारण है कि हमने मानव जीवन का मूल्य ही नहीं समझा है।

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