अब घरेलू हिंसा और आत्महत्या पर लगेगा लाकडाऊन

अब घरेलू हिंसा और आत्महत्या पर लगेगा लाकडाऊन

नमस्कार दर्शकों स्वागत है आपका हमारे विशेष कार्यक्रम ख़बरों की खबर का सच में। क्या आप घूट घूट कर जीवन जी रहे हैं।‌ घरेलू हिंसा के शिकार हो रहे हैं? आज के कार्यक्रम में हम एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक बुराई जिसे घरेलू हिंसा कहते हैं, से होने वाले मानसिक, शारीरिक और सामाजिक नुकसान और उसके निवारण पर बात करेंगे।

अब घरेलू हिंसा और आत्महत्या पर लगेगा लाकडाऊन

घरेलू हिंसा केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में होती है, जो विभिन्न संस्कृतियों में, और आर्थिक स्थिति के सभी स्तरों पर समाज के लोगों को प्रभावित करती है; । संयुक्त राज्य अमेरिका में, 1995 ( उन्नीस सौ पचानवे) में ब्यूरो ऑफ जस्टिस स्टैटिस्टिक्स के अनुसार, महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में साथी द्वारा हिंसा की छह गुना अधिक दर की सूचना दी। हालांकि, अध्ययन में पाया गया है कि इन स्थितियों में पुरुषों के पीड़ित होने की संभावना बहुत कम है। “

घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 ( Protection of Women From Domestic Violence Act, 2005 ) के अनुसार घरेलू हिंसा की परिभाषा

घरेलू हिंसा की परिभाषा-इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए प्रत्यर्थी का कोई कार्य, लोप या किसी कार्य का करना या आचरण, घरेलू हिंसा गठित करेगा यदि वह, –

(क) व्यथित व्यक्ति के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, अंग की या चाहे उसकी मानसिक या शारीरिक भलाई की अपहानि करता है, या उसे कोई क्षति पहुंचाता है या उसे संकटापन्न करता है या उसकी ऐसा करने की प्रकृति है और जिसके अंतर्गत शारीरिक दुरुपयोग, लैंगिक दुरुपयोग, मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग और आर्थिक दुरुपयोग कारित करना भी है; या 

(ख) किसी दहेज या अन्य संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के लिए किसी विधिविरुद्ध मांग की पूर्ति के लिए उसे या उससे संबंधित किसी अन्य व्यक्ति को प्रपीड़ित करने की दृष्टि से व्यथित व्यक्ति का उत्पीड़न करता है या उसकी अपहानि करता है या उसे क्षति पहुंचाता है; या

(ग) खंड (क) या खंढ (ख) में वर्णित किसी आचरण द्वारा व्यथित व्यक्ति या उससे संबंधित किसी व्यक्ति पर धमकी का प्रभाव रखता है; या

(घ) व्यथित व्यक्ति को, अन्यथा क्षति पहुंचाता है या उत्पीड़न कारित करता है, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक ।

दर्शकों , हाल ही में अहमदाबाद की आयशा बानो की आत्महत्या के बारे में पूरा देश जानता है । ग्लोबल वार्मिंग की तरह आत्महत्या एक गम्भीर मुद्दा बन चुका है। आयशा बानो ने आत्महत्या करने से पहले अपना एक वीडियो बनाया था जो बेहद भावुक कर देने वाला है। आयशा बानो ने मोबाइल वीडियो में अपनी आपबीती कहकर समाज के लिए कई तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं। उनके आखिरी शब्द थे, मैं अल्लाह से दुआ करती हूं कि मुझे फिर कभी इंसानों की शक्ल नहीं देखनी पड़े। आयशा अपने निकाह के बाद से और अधिक दहेज लाने के लिए पीड़ित की जा रही थी। वह पिछले कुछ समय से अपने पिता के घर रह रही थी।

“आत्महत्या करने से पहले उसने अपने शौहर से फोन पर उनकी जिंदगी को फिर से ठीक करने के बारे में बात करनी चाही परंतु दहेज के लोभी पति ने कहा मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी तुम चाहे मरो या जिओ। मरने से पहले अपना वीडियो बना कर भेज देना।” दुखी आयशा ने आत्महत्या करना बेहतर समझा। आयशा के पिता ने उसे आत्महत्या न करने के लिए फोन पर बार बार समझाया पर‌ वह न मानी। न जाने कितनी ही आयशा बानो गुपचुप तरीके से आत्महत्या कर लेती हैं जिनकी किसी को कभी भनक भी लगने नहीं दी जाती तथा मामले को परिवार , समाज और पुलिस के दबाव के कारण दबा दिया जाता है।

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दूसरी ओर ब्रिटेन के शाही परिवार में ब्याही गई actor मैगन मर्केल जिन्होंने 2018 में प्रिंस हैरी से विवाह किया था और वह बन गई थीं डचैस आफ ससैकस । मैगन ने हाल ही में Oprah Winfrey के शो पर यह कबूल किया कि जिस तरह के शाही दबाव में वह जी रही थीं उनका मन करता था कि वह आत्महत्या कर लें जिससे सबकी ज़िंदगी बेहतर हो जाएगी। पर यह बहुत अच्छा है कि उन्होंनेे ऐसा नहीं किया।

कहा जाता है कि दक्षिण अफ्रीका में दुनिया में लिंग आधारित हिंसा के सबसे अधिक आंकड़े हैं, जिनमें बलात्कार और घरेलू हिंसा (फोस्टर 1999; द इंटीग्रेटेड रीजनल नेटवर्क [IRIN], जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका, 25 मई, 2002) शामिल हैं।
विभिन्न राष्ट्रीय सर्वेक्षणों के अनुसार, भारत में, लगभग 70% महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हैं।

घरेलू हिंसा एक व्यापक सामाजिक समस्या है

जहां पर महिलाओं को भले वह नौकरीपेशा हो या घर की चारदीवारी में रहकर कामकाज करने वाली, परिवार, बच्चों का भरण-पोषण करने वाली मानते हुए अनादर की दृष्टि से देखा जाता है। ज्यादातर परिवारों में महिलाओं को घर के विभिन्न सदस्यों द्वारा हमेशा से प्रताड़ित और उपेक्षित किया जाता रहा है । घरेलू हिंसा का शिकार अधिकतर नवविवाहिताएं, पत्नी, कम आयु के नौकर- नौकरानियां, बच्चे , शारीरिक रूप से दुर्बल और वृद्ध होते हैं। देखा गया है कि घरेलू हिंसा का मैन टारगेट अधिकतर महिलाएं ही बनती हैं।

भारत के राष्ट्रीय हेल्थ सर्वे के मुताबिक हर तीसरी महिला किसी न किसी तरह से घरेलू हिंसा की शिकार रह चुकी हैं। देश मे महिलाओं के खिलाफ हिंसा का मुद्दा कई सालों से सरकारी नीतियों के एजेंडे में रहा है। सरकारी आंकड़ों से एक बात साबित होती है कि भारत में महिलाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर घरेलू हिंसा एक वास्तविकता है और ज़्यादातर मामलों में औरतें किसी से अपनी आपबीती कह भी नहीं पातीं।

घरेलू हिंसा एक ऐसा अपराध है जिसे पारिवारिक मानहानि के डर से छुपाया जाता है, और ऐसी हिंसा की रिपोर्ट कम ही दर्ज़ की जाती है, इन सबके बावज़ूद भी घरेलू हिंसा के जितने केस रिपोर्ट होते हैं, वे आँकड़े चौंकाने वाले हैं। भारत में हर पाँच मिनट में घरेलू हिंसा की एक घटना रिपोर्ट की जाती है।

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ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब घरेलू हिंसाओं की घटना से अखबार के पन्ने न भरे हों। लड़की के माता-पिता द्वारा कम दहेज देने के कारण दुल्हन को प्रताड़ित किया जाता है जिसके फलस्वरूप पीड़िता या तो आत्महत्या कर लेती है या उसे परिवार वालों द्वारा जला या मार दिया जाता है। अक्सर पति का शादी के बाद भी अन्य महिला से संबंध होने पर पत्नी को वह अधिकार और सम्मान नहीं मिल पाते जिसकी वह अधिकारी होती है।

पास पड़ोस के लोग भी मूक दर्शक बने रहते हैं

मूक-दर्शक बने रहना यह हमारा स्वभाव सा बन गया है । पीड़ित व्यक्ति या महिला की मदद के लिए आवाज़ तब उठाई जाती है या तो जब वह मार दी जाती है या उसके प्रति शारीरिक हिंसा की सभी हदें पार हो चुकी होती हैं। हद तो तब हो जाती है जब पास पड़ोस के घरों में हो रही हिंसा को लोग आंख मूंद कर नज़रअंदाज कर देते हैं। सोशल मीडिया पर तो आवाज़ उठाते हैं पर पड़ोस में हिंसा के शिकार हो रहे लोगों को बचाने कोई आगे नहीं जाता। दुख की बात तो यह है कि लोग शिक्षित होते हुए भी गलत परम्पराओं व रूढ़िवादी सोच में जी रहे हैं। घरेलू हिंसा झेल रहे लोग यह समझ ही नहीं पाते कि किससे बात करें, मदद कहां से लें और मदद किससे मांगनी है । घरेलू हिंसा के अधिकतर मामलों में महिलाएं अपने बच्चों, परिवार की इज्ज़त ,आर्थिक निर्भरता न होने के कारण भी चुपचाप सहती रहती हैं।

लगभग 70 प्रतिशत समाज आज शिक्षित है फिर भी समाज से घरेलू हिंसा में कमी होती नहीं दिख रही । मीडिया के विभिन्न माध्यमों से यह पता चलता है की कितनी ही बहन बेटियां घरेलू हिंसा के द्वारा पनप रहे मानसिक दबाव के कारण आत्महत्या करने को मजबूर होती हैं। परंतु आत्महत्या घरेलू हिंसा या किसी भी और समस्या का समाधान कदापि नहीं है। आत्महत्या (suicide) कभी भूल कर भी न करें ।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15 से 49 साल के आयु वर्ग में 29 फीसदी महिलाओं ने पतियों द्वारा हिंसा की बात मानी थी। ज्यादातर महिलाएं खुद भी घरेलू हिंसा को अपने जीवन का सहज, स्वाभाविक हिस्सा मानती हैं। इस कारण जब वे ऐसी हिंसा का सामना करती हैं तो अक्सर ही इस बारे में किसी से शिकायत नहीं करती। इसका प्रभाव यह पड़ता है कि पति की ऐसी हिंसक गतिविधियां बढ़ती ही जाती हैं, और बर्दाश्त से बाहर होने पर महिलाएं चुपचाप खुद को मौत के मुंह में धकेल देती हैं। कुछ समय पहले चर्चित पत्रिका द लेसेन्ट में एक रिपोर्ट छपी थी जिसके अनुसार दुनिया भर में सन 1990 में 25 फिसदी महिला आत्महत्या के मामले भारत के थे जो 2016 में बढ़कर 37 फीसदी हो गए।

आत्महत्या सामाजिक बुराई है लेकिन यह क्यों पनपती है, विश्व के सभी समाजशास्त्री आत्महत्या का ज़िम्मेदार केवल ओर केवल परिवार को ही मानते हैं। विश्व के सभी देशों में इस तरह की हिंसाओं में कमी लाने के कानून भी बनाए गए हैं लेकिन बहुत कम लोग ही कानून का सही और समय पर उपयोग कर पाते हैं। घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005, भारत की संसद का एक अधिनियम है जो महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए लागू किया गया है। यह 26 अक्टूबर 2006 से भारत सरकार और महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा लागू किया गया था।

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सभी तरह की घरेलू हिंसा और अन्य हिंसा होने का कारण अध्यात्मिक ज्ञान की कमी है । समय तेज़ी से बदल रहा है इसलिए अब सामाजिक ज्ञान को आध्यात्मिक ज्ञान की निगाह से देखकर हर तरह की हिंसा पर अंकुश लगाना होगा।

विश्व में अब एक ऐसा समाज तैयार हो रहा है जहां घरेलू हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है और यह जागरूक व स्वच्छ समाज की पहचान भी बन चुका है। ऐसे परिवार जहां बहू को बेटी का दर्जा मिल रहा है, बच्चों को बचपन से ही अच्छे संस्कार दिए जा रहे हैं। विवाह में दहेज लेना और देना दोनों महापाप हैं।नशा करना पशु तुल्य है और परिवार आपस में मिल जुल कर शांति से जीवन जी रहे हैं। यह समाज किसी कल्पना से बनाया गया नहीं है । यह वास्तविक हैं। समाज से घरेलू हिंसा को जिस महान संत ने मिटाया है उनका नाम है संत रामपाल जी महाराज जी। सुखी पारिवारिक जीवन जीने हेतु जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज से जुड़िए

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