तकनीकी निर्भरता के युग में पिछले दशक में भारत ने अंतरिक्ष से लेकर डिजिटल भुगतान तक कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय तरक्की की है। लेकिन एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ हम आज भी भारी विदेशी निर्भरता का सामना कर रहे हैं — वह है तकनीकी और औद्योगिक इनपुट्स, और सबसे बड़ा हिस्सा इसमें आता है चीन से। भारत हर साल चीन से लाखों करोड़ रुपये मूल्य का इलेक्ट्रॉनिक, फार्मास्यूटिकल, सोलर उपकरण, ऑटो पार्ट्स और मशीनरी आयात करता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि एक बढ़ती हुई आर्थिक शक्ति होते हुए भी हम अभी तक इस आयात निर्भरता से मुक्त क्यों नहीं हो पाए हैं?
चीन से आयात की मौजूदा स्थिति
भारत का चीन से आयात डेटा
आंकड़ों की हकीकत
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 में भारत ने चीन से लगभग $101.8 बिलियन का सामान आयात किया। इसमें से केवल $16.6 बिलियन का निर्यात भारत से चीन की ओर हुआ, जिससे व्यापार घाटा $85 बिलियन से अधिक रहा। इलेक्ट्रॉनिक्स, मोबाइल कंपोनेंट्स, सोलर पैनल्स, फार्मा API, किचन उपकरण, टॉयज, ऑटो-पार्ट्स — ये सभी श्रेणियाँ ऐसे उत्पादों में शामिल हैं जिनमें भारत चीन पर लगभग निर्भर है।
कौन से सेक्टर्स सबसे ज्यादा प्रभावित हैं?
- इलेक्ट्रॉनिक और मोबाइल उपकरण: मोबाइल फोन निर्माण के लिए चिपसेट, बैटरी और सर्किट्स चीन से आते हैं।
- सोलर इंडस्ट्री: भारत की 85% सोलर पैनल सप्लाई चीन से होती है।
- फार्मास्यूटिकल्स (API): भारत की 65-70% Active Pharmaceutical Ingredients चीन से आयात होते हैं।
- खिलौने और उपभोक्ता वस्तुएं: भारत में बिकने वाले 70% खिलौनों की उत्पत्ति चीन में होती है।
तकनीकी निर्भरता के कारण
चीन की लागत और भारत की तैयारी में अंतर
कम लागत और उच्च उत्पादन क्षमता
चीन का निर्माण तंत्र बेहद संगठित, तकनीकी रूप से उन्नत और लागत में सस्ता है। वहां की फैक्ट्रियाँ large-scale पर ऑटोमैशन और लो-कॉस्ट लेबर का भरपूर उपयोग करती हैं। इससे भारत जैसे देशों के लिए उनका सामान सस्ता और तुरंत उपलब्ध रहता है।
भारत की चुनौतियाँ
भारत में कई क्षेत्रों में अभी भी raw material dependency, fragmented manufacturing, कौशल की कमी, और अनुसंधान व नवाचार पर निवेश की कमी है। “Make in India” जैसी योजनाएँ प्रभावी तो हैं, लेकिन इनका असर धीमा है और चीन से प्रतिस्पर्धा करना अभी भी कठिन है।
क्या यह केवल आर्थिक है या रणनीतिक भी?
राष्ट्रीय सुरक्षा और आत्मनिर्भरता पर असर
जियोपॉलिटिकल जोखिम
जब सीमा पर तनाव बढ़ता है — जैसे 2020 का गलवान घाटी संघर्ष — तब भारत का चीन पर आर्थिक निर्भर होना एक रणनीतिक कमजोरी बन जाता है। ऐसी स्थिति में आयात बंद करना या बदलना आसान नहीं होता, जिससे भारत को दबाव झेलना पड़ता है।
सप्लाई चेन का weaponization
चीन तकनीकी उत्पादों को वैश्विक राजनीतिक दबाव के रूप में भी इस्तेमाल करता रहा है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देश इससे सतर्क हो चुके हैं और भारत भी अब इसी दिशा में विचार कर रहा है।
सरकार की रणनीति और ‘आत्मनिर्भर भारत’

क्या भारत बदल रहा है अपनी नीति?
PLI योजना और घरेलू उत्पादन
भारत सरकार ने Production Linked Incentive (PLI) स्कीम के माध्यम से मोबाइल निर्माण, API, इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स और सोलर उपकरणों के लिए निवेश और प्रोत्साहन योजनाएँ शुरू की हैं। Foxconn, Samsung, और Dixon जैसी कंपनियाँ भारत में निर्माण इकाइयाँ खोल रही हैं, लेकिन यह प्रक्रिया समय-साध्य है।
सोलर और फार्मा पर फोकस
- सोलर मैन्युफैक्चरिंग: भारत अब घरेलू सोलर इकाइयाँ (INGOTS, CELLS, PANELS) बनाने पर ध्यान दे रहा है।
- फार्मा पार्क: कई राज्यों में Bulk Drug Parks बनाए जा रहे हैं जिससे API आयात कम किया जा सके।
निजी क्षेत्र और निवेश की भूमिका
क्या उद्योग भी अपनी नीति बदल रहे हैं?
स्मार्टफोन और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र
Apple जैसे ब्रांड अब भारत में उत्पादन बढ़ा रहे हैं। Tata Group ने iPhone असेंबली में निवेश किया है। Lava, Micromax जैसी भारतीय कंपनियाँ भी R&D और डिजाइन में दोबारा सक्रिय हो रही हैं।
निवेश और नवाचार की जरूरत
भारत में स्टार्टअप्स और MSMEs को तकनीकी नवाचार के लिए सस्ते ऋण, तकनीकी इन्क्यूबेशन और वैश्विक सहयोग की ज़रूरत है। तभी वे चीन जैसी प्रतिस्पर्धा से मुकाबला कर सकते हैं।
आत्मनिर्भरता में धर्म और नीति का संगम
संत रामपाल जी महाराज ने बार-बार यह सतज्ञान बताया है कि केवल दिखावटी देशभक्ति या बाहरी विकास नहीं, बल्कि आंतरिक स्वावलंबन और सत्कर्म में ईमानदारी ही राष्ट्र निर्माण का आधार बन सकते हैं। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने का अर्थ केवल धन कमाना नहीं, बल्कि ऐसी नीति अपनाना है जो किसी बाहरी दबाव में न झुके और समाज के अंतिम व्यक्ति तक लाभ पहुँचा सके। भारत जब तक हर घर के श्रमिक और छात्र को तकनीकी रूप से सशक्त नहीं करता, तब तक विदेशी निर्भरता से पूर्ण मुक्ति संभव नहीं। यह केवल आर्थिक नहीं, आध्यात्मिक जागरूकता का विषय भी है।
आगे की राह: भारत वैश्विक तकनीकी आपूर्ति का नया केंद्र बन सकता है
भारत सरकार की योजनाएँ अब सही दिशा में चल रही हैं – चाहे वह PLI हो, फॉर्मा क्लस्टर्स, या इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग। लेकिन अगर भारत को वाकई चीन पर से निर्भरता हटानी है तो उसे निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना होगा:
- अनुसंधान और नवाचार में बड़ा निवेश
- तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास
- व्यापारिक प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बनाना
- MSMEs को बढ़ावा देना
- रणनीतिक क्षेत्रों में दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता योजना बनाना
यदि इन सभी बिंदुओं पर समन्वित कार्य हुआ, तो आने वाले 10 वर्षों में भारत न केवल आयात निर्भरता से मुक्त होगा, बल्कि वैश्विक तकनीकी आपूर्ति का नया केंद्र भी बन सकता है।
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FAQs: भारत‑चीन तकनीकी निर्भरता
Q1: भारत चीन से सबसे ज्यादा क्या आयात करता है?
भारत चीन से सबसे अधिक मोबाइल कंपोनेंट्स, इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स, सोलर पैनल्स, फार्मा APIs, और खिलौने आयात करता है।
Q2: भारत चीन पर इतना निर्भर क्यों है?
चीन की उत्पादन लागत कम है, सप्लाई शृंखला संगठित है और तकनीकी दक्षता अधिक है — जिससे भारतीय कंपनियाँ उन्हें सस्ता और आसान विकल्प मानती हैं।
Q3: क्या सरकार इस निर्भरता को कम करने के लिए कुछ कर रही है?
हाँ, सरकार ने कई योजनाएँ जैसे PLI स्कीम, फार्मा पार्क्स और सोलर मैन्युफैक्चरिंग के लिए घरेलू प्रोत्साहन योजनाएँ शुरू की हैं।
Q4: क्या भारत चीन से आयात पर प्रतिबंध लगा सकता है?
प्रतिबंध पूरी तरह संभव नहीं है क्योंकि कई जरूरी तकनीकी इनपुट्स केवल चीन से ही आते हैं। विकल्प विकसित होने में समय लगेगा।
Q5: क्या भारत आत्मनिर्भर बन सकता है?
हाँ, यदि दीर्घकालिक नीति, निवेश, तकनीकी प्रशिक्षण और नवाचार को सही दिशा में बढ़ाया जाए, तो भारत अगले दशक में आत्मनिर्भर बन सकता है।