नमस्कार! दर्शकों! खबरों की खबर का सच साप्ताहिक कार्यक्रम में आपका स्वागत है। आज हम देश में फैली गरीबी और हर मुद्दे से जुड़े उसके आध्यात्मिक पहलू पर बात करेंगे।
भारत में दो-तिहाई लोग गरीबी में जीवनयापन करते हैं। भारतीय आबादी का 68.8% प्रतिदिन $ 2 से कम पर रहता है और 30% से अधिक आबादी को $ 1.25 से कम उपलब्ध हैं – उन्हें बेहद गरीब माना गया है। यह भारतीय उपमहाद्वीप को दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक बनाता है। भारतीय समाज के सबसे कमज़ोर सदस्य महिलाएं और बच्चे हैं।
इसके अलावा WEF ने 19 जनवरी, 2020 को ग्लोबल सोशल मोबिलिटी रिपोर्ट 2020: इक्वैलिटी, ऑपर्चुनिटी एंड अ न्यू इकोनॉमिक इंपेरेटिव जारी किया है । रिपोर्ट के अनुसार, कम आय वाले परिवार में जन्म लेने वाले भारतीयों को देश की औसत आय तक पहुंचने के लिए सात पीढ़ियों तक का समय लगेगा।
एक निर्धारित आय स्तर के आधार पर गरीबी, बुनियादी आवश्यकताओं की कमी है। विश्व बैंक के दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रति दिन 1.90 डॉलर से कम पर रहने वाले लोगों को अत्यधिक गरीबी में रहने वाले माना जाता है। 220 मिलियन भारतीय 32 रुपये / दिन से कम के व्यय स्तर जीवनयापन करते हैं।
- गरीबी के कई कारणों में
- तेज़ी से बढ़ती हुई जनसंख्या
- कृषि में कम उत्पादन
- महंगाई
- निरक्षरता
- बेरोज़गारी
- सामाजिक
- राजनैतिक और भौतिक कारक शामिल हैं
इसके दुष्परिणामों के रूप में हिंसा,अपराध, चोरी, डकैती, तनाव, बेघर होना, बाल श्रम ,स्वास्थ्य पर बुरा असर, भ्रष्टाचार, ऊंच-नीच, अभद्रता को देखा जाता है।
गरीबी को खत्म करने के लिए सरकार द्वारा समय-समय पर कई योजनाएं भी बनाई जाती हैं। जिनमें से एक सरकार की मनरेगा रोज़गार सृजन योजना मददगार है। जिसके अंतर्गत उज्जवला योजना के जरिए फ्री गैस, पीएम किसान सम्मान निधि योजना आदि के रूप में गरीब लोगों को लाभान्वित करने का प्रयास करती है।
मनरेगा योजना क्या है?
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा / MNREGA) भारत में लागू एक रोज़गार गारंटी योजना है, जिसे 7 सितंबर 2005 को विधान द्वारा अधिनियमित किया गया।
इसके अलावा भी सत्ता में आने वाली प्रत्येक पार्टी गरीबों के लिए अलग-अलग योजनाएं लांच करती हैं। लेकिन उन योजनाओं का कितना लाभ वाकई में गरीब वर्ग को मिल पाता है इससे हम और आप अच्छी तरह वाकिफ हैं।
आखिर ऐसा हर बार क्यों होता है कि सरकार द्वारा बनाई गई योजनाएं अक्सर विफल हो जाती हैं? क्यों चाह कर भी सरकार गरीबी दूर नहीं कर पा रही।आज हम इसके पीछे निहित आध्यात्मिक कारण को जानेंगे।
आध्यात्मिक ज्ञान के मुताबिक , गरीबी और अमीरी हमारे पिछले जन्मों के पाप और पुण्य कर्म पर आधारित होती है। जीवन में आर्थिक सुविधा और असुविधा हमारे पिछले जन्मों के संस्कार तथा कर्मों के कारण निर्धारित होते है। जीवन में हमें जो मिलता है उसे हम किस्मत के नाम से जानते हैं। पूर्ण संत हमें परमात्मा के विधान से परिचित कराते हुए बताते हैं कि जिस मनुष्य ने अपने पिछले जन्मों में जैसे कर्म किए उसी के आधार पर उसे अब दोबारा मनुष्य जन्म मिला है और उसे उसी प्रकार का जीवनयापन करना पड़ता है अर्थात किए हुए कर्मों को भोगना पड़ता है। धन की कमी या धन के अभाव के परिणामों को भोगना, पाप कर्मों का दंड मिलने जैसा है।
हम अपने आसपास भी इस प्रकार के अनेकों उदाहरण देख पाते हैं जैसे एक ही परिवार के दो भाई जिनमें से एक के पास अच्छी नौकरी तथा अच्छा पैसा है। वह अच्छा जीवनयापन कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ दूसरा भाई गरीबी में जीवन जीने को मजबूर होता है।
अब प्रश्न उठता है कि क्या प्रारब्ध को बदला जा सकता है?
इस प्रश्न का उत्तर है हाँ और यह सौ प्रतिशत सत्य भी है । लेकिन प्रारब्ध और कर्म के दंड को केवल सतगुरु द्वारा प्राप्त सद्भक्ति द्वारा काटा जा सकता है। वर्तमान जीवन में हमे कौनसे कर्म करने चाहिए तथा कौनसे नहीं यह भी केवल सतगुरु ही बताते हैं। पाप कर्मों के दंड से हमें सतगुरु ही बचा सकते हैं।
कबीर, कर्म फांस छूटे नहीं, केतो करो उपाय।
सद्गुरू मिले तो उबरै, नहीं तो प्रलय जाय।।
परमेश्वर कबीर साहेब जी कहते हैं, अन्य प्रभु तो केवल किए कर्म का फल ही दे सकते हैं। जैसे प्राणी को दुःख तो पाप से होता है तथा सुख पुण्य से। आपको पाप कर्म के कारण कष्ट था। यह आपके प्रारब्ध में लिखा था। यह किसी भी अन्य भगवान से ठीक नहीं हो सकता था। पाप केवल पूर्ण ब्रह्म परमात्मा कबीर साहेब जी ही काट सकते है।
आइए आपको बताते हैं कि कर्म बंधन कैसे बनते है?
काल ब्रह्म ने जीव के कर्मों को तीन प्रकार से बाँटा है। संचित कर्म, प्रारब्ध कर्म और क्रियावान कर्म।
- संचित कर्म :- संचित कर्म वे पाप तथा पुण्य कर्म हैं जो जीव ने जन्म-जन्मातरों में किए थे। उनका भोग प्राप्त नहीं हुआ है। वे जमा हैं।
- दूसरा प्रारब्ध कर्म:- प्रारब्ध कर्म वे कर्म हैं जो जीव को जीवन काल में भोगने होते हैं जो संचित कर्मों से औसत करके बनाए जाते हैं। उदाहरण के लिए यदि पाप कर्म एक हजार (1000) हैं और पुण्य कर्म पाँच सौ (500) हैं तो दोनों समान औसत में लिए जाते हैं। यानि की 20-20 प्रतिशत लेकर प्रारब्ध बना तो पाप कर्म 50 और पुण्य कर्म 25 बने। इस प्रकार प्रारब्ध कर्म यानि जीव का भाग्य बनता है। यही प्रारब्ध कर्म कहलाते हैं।
- तीसरा क्रियावान कर्म :- अपने जीवन काल में जो कर्म प्राणी करता है, वे क्रियावान कर्म कहे जाते हैं।
वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज ही पूर्ण सतगुरु हैं जो सतभक्ति द्वारा हमारे प्रारब्ध को काट सकते हैं। हमें गरीबी के जंजाल से मुक्त कर सकते हैं। आप सभी दर्शकों से विनम्र निवेदन है कृपया करके संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संगों को ज़रूर सुनें तथा अति शीघ्र सद्भक्ति ग्रहण करें।