नमस्कार दर्शकों! SA News के स्पेशल प्रोग्राम खबरों की खबर का सच कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है। इस बार के सोशल मुद्दे में हम बात करेंगे आधुनिक शिक्षा क्रांति” की और “शिक्षा के उत्तम प्रयोग के बारे में विस्तार से।
हम आपको बताएंगे शिक्षक की परिभाषा? राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका , शिक्षक करते हैं शिष्यों में शिक्षा के प्रति रुचि जागृत और समाज में शिक्षक की भागीदारी कितनी ज़रुरी है?
शिक्षक कौन बन सकता है?
एक शिक्षक या स्कूल टीचर एक ऐसा व्यक्ति है जो विद्यार्थियों और छात्रों को शिक्षा प्रदान करता है। एक व्यक्ति जो शिक्षक बनने की इच्छा रखता है, उसे पहले किसी विश्वविद्यालय या कॉलेज से निर्दिष्ट पेशेवर योग्यता या प्रमाण पत्र प्राप्त करना होता है। अन्य पेशेवरों की तरह, शिक्षक भी अपनी शिक्षा जारी रखने के बाद, व्यावसायिक विकास को जारी रखने वाली प्रक्रिया कर सकते हैं। समय और संस्कृतियों के दौरान शिक्षक की भूमिका भिन्न हो सकती है। शिक्षक साक्षरता और संख्यात्मकता, शिल्प कौशल या व्यावसायिक प्रशिक्षण, कला, धर्म, संगीत, नागरिक शास्त्र, सामुदायिक भूमिका या जीवन कौशल में शिक्षा प्रदान कर सकते हैं।
शिक्षक मनुष्य के भविष्य का निर्माता होता है एवं शिक्षक ही वह व्यक्ति होता है जो कच्चे घड़े को सहारा देता है। शिक्षक छात्रों को बुराई से बचाता है और उन्हें एक सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति बनाने का प्रयास करता है। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि शिक्षक अपने शिष्य का सच्चा पथ प्रदर्शक होता है। शिक्षक अपने छात्रों का भविष्य बना भी सकते हैं और बिगाड़ भी। शिक्षक ऐसा होना चाहिए कि वह छात्र के लिए पेड़ की तरह उसके जीवन में खड़ा रहे। शिक्षक का यह कर्तव्य होता है कि ज़रूरत पड़ने पर वह अपने छात्रों को प्रेरित करता रहे न कि ताने मार मारकर उनकी आगे बढ़ने औलर पढ़ने की इच्छाशक्ति को तोड़ता रहे।
महात्मा गांधी से लेकर सर अब्दुल कलाम जी तक, गुरू नानक से लेकर मीरा बाई तक सभी का नाम और यश अपने गुरुओं द्वारा दिए ज्ञान के दमखंभ पर ही फैला । गुरु न होते तो समाज दिशाविहीन और दलदल बन जाता। जीवन में गुरु का होना आसमान में सूरज और चांद के होने जैसा ज़रूरी है। जिसकी ऊष्णता और शीतलता जीवन को बारह मास रोज़ निखरने की प्रेरणा देती है।
अध्यापक भविष्य निर्माता की भूमिका में
अध्यापक- शिक्षण प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग होते हैं। अध्यापक के बिना शिक्षा की प्रक्रिया बैमानी है । शिक्षक की क्रियाओं और व्यवहार का प्रभाव सीधे तौर पर उसके विद्यार्थियों, विद्यालय और समाज पर पड़ता है। इस दृष्टि से कहा जाता है कि अध्यापक राष्ट्र का निर्माता भी होता है। अतः अध्यापक अपने कार्यों को सफलतापूर्वक एवं उचित प्रकार से करें यह अति आवश्यक है । आइए जानते हैं कि शिक्षक में कौन से गुण अथवा विशेषताएं होनी चाहिएं।
1.शैक्षिक गुण: एक अध्यापक में अध्ययन के स्तर अनुसार न्यूनतम शैक्षिक योग्यता का होना अनिवार्य है। साथ ही अध्यापक का प्रशिक्षित होना भी आवश्यक है। उदाहरण के तौर पर- प्राइमरी कक्षाओं को पढ़ाने के लिए अध्यापक को कम से कम हायर सेकेंडरी कक्षा पास होना तथा एस.टी.सी. के रूप में शिक्षण कार्य का प्रशिक्षण प्राप्त किया हुआ होना चाहिए।
इसी प्रकार सेकेण्डरी कक्षाओं को पढ़ाने वाले अध्यापक के पास कम से कम शैक्षिक योग्यता के रूप में स्नातक एवं B.Ed किया हुआ होना चाहिए। उच्च माध्यमिक कक्षा को पढ़ाने वाला अध्यापक संबंधित विषयों में स्नातकोत्तर की डिग्री लिया हुआ होना चाहिए। साथ ही B.Ed की डिग्री भी उसके पास होना अनिवार्य है। कई विद्यालयों में अप्रशिक्षित अध्यापक या अध्यापिकाओं को रख लिया जाता है जो उचित नहीं है। अतः अध्यापक का चयन करते समय इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि उनमें न्यूनतम योग्यता हो तथा प्रशिक्षित हो।
2.व्यावसायिक गुण: व्यावसायिक गुण जैसे व्यवसाय के प्रति रुचि और निष्ठा होना, अपने शिक्षा के विषय का पूर्ण ज्ञान होना, पाठ्यक्रम के अनुसार छात्रों को पढ़ाना।
3.सांस्कारिक गुण: एक शिक्षक के अंदर अच्छे संस्कार व शिष्टता होना अति अनिवार्य है। चूंकि एक शिक्षक से प्रभावित होकर सैकड़ों विद्यार्थी सीख लेकर हुबहू वैसे ही कार्य करने लग जाते हैं। अर्थात शिक्षक हीवह व्यक्ति है जो अपने छात्रों का चरित्र निर्माण और पतन का जि़म्मेदार भी होता है।
4.आध्यात्मिक गुण: किसी भी शिक्षक को कोई भी शिक्षा देने से पहले परमेश्वर के विधान का ज्ञान होना अनिवार्य है। क्योंकि किसी भी काम को सफल करने के लिए परमेश्वर का आशीर्वाद होना भी अति अनिवार्य होता है।
भारत व अन्य देशों में समाज निर्माण के लिए शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षक एक सभ्य समाज के निर्माण में मज़बूत स्तंभ होते हैं। शिक्षक होना गर्व की बात होती है, इसलिए अनेकों माता-पिता अपने बच्चों को बड़ा होने पर शिक्षक बनने की सलाह देते हैं। एक शिक्षक के रूप में करियर बनाने पर वह मान-सम्मान और अच्छी तनख्वाह पाकर अपना जीवन-यापन कर सकते हैं।
समाज को अच्छे शिक्षकों की हमेशा जरूरत होती है। एक शिक्षक का विद्यार्थी के जीवन में, तथा उनके माता-पिता की नजरों में बहुत ही मान होता है। एक अच्छा शिक्षक विद्यार्थी के जीवन की दशा और दिशा दोनों ही बदल देता है। शिक्षक होना अपने आप में कोई आसान काम नहीं होता, चुंकी एक शिक्षक को एक विद्यार्थी के भविष्य निर्माण के साथ साथ उसके चरित्र निर्माण का अनमोल कार्य भी करना होता है।
क्या आप जानते हैं कि पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में किसी का भी उचित चरित्र निर्माण संभव नहीं है। यही कारण है की प्राचीन काल में राजा महाराजा अपने राजकुमारों को छोटी आयु में ही विद्या ग्रहण करने के लिए ऋषि-मुनियों के आश्रम में आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा करते थे। पहले के समय में आध्यात्मिक शिक्षा को मूल विषय माना जाता था। वर्तमान समय में विद्यालयों में केवल सुबह के समय प्रार्थना सभा में भगवान की स्तुति की जाती है और बाकि समय केवल व्यावसायिक शिक्षा , चरित्र निर्माण की पद्धति पर आधारित शिक्षा पर ही ज़ोर दिया जाता है। जिस कारण से समाज में रह रहे लोगों का चारित्रिक पतन और सामाजिक पतन दोनों हो रहा है।
कलयुग में ही मानव को शिक्षा क्यों मिल रही है? और इस शिक्षा का सही उपयोग हम कैसे कर सकते हैं?
भारत में लगभग हजारों सालों से ही वर्ण व्यवस्था का चलन रहा है।यह वर्ण व्यवस्था इसलिए शुरू करवाई गई थी कि कुछ लोग धर्म ग्रंथों को पढ़ें व लोगों को समझाएं कि इनमें क्या लिखा है । इन्हीं धर्म ग्रंथों को पढ़ने के लिए शिक्षा की भी आवश्यकता पड़ी । जो लोग इन वेदों पुराणों को पढ़ने लगे वह पंडित कहलाए। इस वर्ण व्यवस्था के चलते केवल ब्राह्मणों और क्षत्रियों को ही शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार होता था। इसके अलावा केवल अक्षर ज्ञान युक्त ब्राह्मण ही वेद ,गीता आदि सदग्रंथों को पढ़ सकते थे। परिणामस्वरूप परमात्मा को चाहने वाली आम जनता किसी भी सदग्रंथ को न ही पढ़ पाती थी और न ही समझ सकते थे। जो कुछ भी ब्राह्मण , पंडित भगवान के बारे में कथाएं बताया वह सुनाया करते थे व भक्ति क्रियाएं सिखाते थे लोगों ने उन पर आंख बंद कर विश्वास करना शुरू कर दिया। जिस कारण से अनपढ़ लोग यह नहीं जान पाए की वह जो भक्ति साधना कर रहे हैं वह वास्तव में वेद- गीता, पुराणों आदि में मौजूद है भी या नहीं। 600 साल पहले पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ने अपने निजधाम सतलोक से पृथ्वी पर आकर अपने सतज्ञान से एक ऐसी क्रांति ला दी जिसके बाद से पूरे विश्व में शिक्षा का एक ऐसा तूफान उठा जो आज तक चल रहा है। परमात्मा ने इस शिक्षा की दया हम पर सिर्फ इसीलिए की है ताकि हम अक्षर ज्ञान युक्त होकर सभी धर्मो के पवित्र सद्ग्रंथों में से प्रमाण देखकर हमारे सृजनहार परमात्मा को पहचानें और अपना कल्याण करवाएं।
कबीर जी को पता था कि जब कलयुग के 5505 वर्ष पूरे होंगे (सन् 1997 में) तब शिक्षा की क्रांति लाई जाएगी। सर्व मानव अक्षर ज्ञानयुक्त किया जाएगा। उस समय मेरा दास सर्व धार्मिक ग्रन्थों को ठीक से समझकर मानव समाज के रूबरू करेगा। सर्व प्रमाणों को आँखों देखकर शिक्षित मानव सत्य से परिचित होकर तुरंत मेरे तेरहवें सत्य कबीर पंथ में दीक्षा लेगा और पूरा विश्व मेरे द्वारा बताई भक्ति विधि तथा तत्त्वज्ञान को हृदय से स्वीकार करके भक्ति करेगा। उस समय पुनः सत्ययुग जैसा वातावरण होगा। आपसी रागद्वेष, चोरी-जारी, लूट-ठगी कोई नहीं करेगा। कोई धन संग्रह नहीं करेगा।
पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान एक सच्चे शिक्षक यानी की सतगुरु के बिना मिल पाना संभव नहीं है। गुरु दत्तात्रेय ने भी 25 गुरु बनाए थे। पहले 24 गुरुओं द्वारा मिले ज्ञान से उनका मोक्ष नहीं हो पाया। फिर पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी उन्हें सतगुरु के रूप में मिले तब जाकर उनका कल्याण हो पाया। इसी तरह भक्तमति मीरा बाई, गुरू नानक देव जी , रविदास जी , मलूकदास जी , धर्म दास जी , रामानंद जी महाराज , गरीबदास जी महाराज इत्यादि महान आत्माओं को पूर्ण परमात्मा मिले उन्हें गुरू बनकर ज्ञान समझाया और उनका उद्धार किया।
वास्तविक सतगुरु को पहचानने के लिए पवित्र श्रीमद भागवत गीता के अध्याय 15 के श्लोक 1 से 4 में लिखा है की जो संसार रूपी उल्टे लटके हुए पीपल के वृक्ष के सभी अंगों को अलग अलग छान लेगा वही तत्वदर्शी संत होगा।
600 साल पहले कबीर साहेब जी ने इस विषय में कहा था,
कबीर अक्षर पुरुष एक पेड़ है, क्षर पुरुष वाकी डार।
तीनों देवा शाखा है, यह पात रूप संसार।।
सतगुरु को पहचानने के विषय में आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज भी कहते हैं
सतगुरु के लक्षण कहूं, मधुरै बैन विनोद।
चार वेद षट शास्त्र , कहें अठारह बोध।।
वर्तमान समय में आध्यात्मिक पूर्ण गुरु/शिक्षक,अध्यापक, मास्टर वाले सारे के सारे गुण केवल जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी में मौजूद हैं। अतः इस वीडियो को देखने वाले सभी दर्शकों से प्रार्थना है की संत रामपाल जी महाराज जी से अच्छा शिष्य बनने वाली शिक्षा ग्रहण करें और अपना कल्याण करवाएं।