नमस्कार दर्शकों! “खबरों की खबर का सच” कार्यक्रम में आप सबका एक बार फिर से स्वागत है। आज की सोशल रिसर्च में हम बात करेंगे की वकालत एक पेशा है या सच्चाई को सामने लाने का जोखिम भरा कार्य है। साथ ही जानेंगे न्यायालयों की गिरती गरिमा के बारे में विस्तार से और कौन है वो असली वकील और कौन सा है वो उच्च न्यायालय जहां केवल सतगुरू की वकालत का महत्व है।
कानून का पारिभाषिक अर्थ क्या है?
क़ानून, विधि; किसी देश या राज्य का अधिकारिक नियम होता है जो बताता है कि लोग कानून के दायरे में रहकर क्या करें या क्या न करें।
वकील कौन होता है?
एक वकील (जिसे “अधिवक्ता”, या अभिभाषक “बैरिस्टर”, एडवोकेट”, “परामर्शदाता” भी कहा जाता है) जो कानून का पालन करता है। एक वकील ने कानून में डिग्री हासिल की होती है, और उसके पास एक विशेष क्षेत्र में कानून का अभ्यास करने का लाइसेंस होता है। यदि मामला अदालत में जाता है, तो वकील अदालत में अपने ग्राहक का प्रतिनिधित्व करता है। वकालत करना वकील का पेशा होता है। एक वकील एक कानूनी पेशेवर भी होता है, जो कानूनी सलाह प्रदान करने के लिए समर्पित होता है। वकील वह व्यक्ति होता है जो न्यायिक प्रक्रिया में किसी एक पक्ष का बचाव या प्रतिनिधित्व करता है। अधिकांश लोगों के पास अपनी बात को प्रभावी ढंग से कहने की क्षमता, ज्ञान, कौशल, या भाषा-शक्ति नहीं होती। जबकि एक अधिवक्ता को उचित भाषा शैली, प्रभावी ढंग, अपने केस का ज्ञान, कौशल और कानूनी ज्ञान होना अति आवश्यक है।
भारतीय न्यायप्रणाली में ऐसे व्यक्तियों की दो श्रेणियाँ हैं : (१) वरिष्ठ अधिवक्ता या ऐडवोकेट तथा (२) अधिवक्ता या वकील। ऐडवोकेट के नामांकन के लिए भारतीय “बार काउंसिल’ अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक प्रादेशिक उच्च न्यायालय के अपने-अपने नियम हैं। उच्चतम न्यायालय में नामांकित ऐडवोकेट देश के किसी भी न्यायालय के समक्ष प्रतिपादन कर सकता है। वहीं दूसरी और एक अधिवक्ता या वकील, उच्चतम या उच्च न्यायालय के समक्ष प्रतिपादन नहीं कर सकता। ऐडवोकेट जनरल अर्थात् महाधिवक्ता शासकीय पक्ष का प्रतिपादन करने के लिए प्रमुखतम अधिकारी है। भारत के कानूनी व्यवसाय से संबंधित कानून अधिवक्ता अधिनियम, 1961 और देश की भारतीय विधिज्ञ परिषद (बार काउंसिल) द्वारा निर्धारित नियमों के आधार पर संचालित होता है। कानून के क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों के लिए यह स्वनिर्धारित कानूनी संहिता है जिसके तहत देश और राज्यों की बार काउंसिल का गठन होता है।
वकील की अपने क्लाइंट या ग्राहक के प्रति ज़िम्मेदारी
एक वकील की नौकरी की जिम्मेदारियों में आमतौर पर न्यायालयों में ग्राहकों को सलाह देना और उनका प्रतिनिधित्व करना, ग्राहकों के साथ संवाद करना और मामलों में शामिल लोग, कानूनी समस्याओं का अनुसंधान और विश्लेषण करना, व्यक्तियों और व्यवसायों के लिए कानूनों की व्याख्या करना आदि शामिल हैं।
एक वकील वास्तव में क्या करता है?
एक वकील कानूनी मुद्दों पर अनुसंधान करता है और कानूनों, नियमों और फैसलों की व्याख्या करने के लिए योग्य होता है। वे वसीयत, कर्म, अनुबंध, मुकद्दमे और अपील जैसे कानूनी दस्तावेज तैयार करते हैं। वे कानूनी सहायकों की तरह काम कर सकते हैं। एक वकील इस पेशे के कई अलग-अलग क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल कर सकता है।
कानून के दायरे में न्यायालय की भूमिका
भारत में जिला स्तर पर न्याय देने के लिए निर्मित न्यायालय “जिला न्यायालय” कहलाते हैं। ये न्यायालय एक जिला या कई जिलों के लोगों के लिए होते हैं जो जनसंख्या तथा मुकद्दमों की संख्या को देखते हुए तय की जाती है। ये न्यायालय उस प्रदेश के उच्च न्यायालय के प्रशासनिक नियंत्रण में काम करते हैं। “जिला न्यायालय” द्वारा दिए गए निर्णयों को सम्बन्धित उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। इसी प्रकार उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों को संबंधित सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। वहीं सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की चुनौती राष्ट्रपति को दी जा सकती है।
आज़ादी से पहले के भारत में वकालत की भूमिका
वकालत करना या पैरवी का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता आया है। पहले के समय में राजा महाराजाओं के दरबार में अदालत लगा करती थीं जिसमें राजा के मंत्रीमंडल के व्यक्ति अधिवक्ता बनते थे और अपराधी को एक कटगहरे में पेश किया जाता था। उस समय राजा, स्वयं न्यायाधीश का कार्य किया करते थे। पौराणिक कथाओं में हमने कई बार यह सुना है की किस प्रकार रामायण में श्री राम और महाभारत में युधिष्ठिर न्याय का शासन किया करते थे। कई ऐसे भी राजा हुआ करते थे जो झूठी और अत्यंत कठोर सजाएं सुनाकर घोर पाप के भागी बन जाते थे। उस समय अपराधी को अपना पक्ष रखने की अनुमति नहीं होती थी ना ही अपराधी को अपने लिए एक वकील रखने की अनुमति दी जाती थी। राजा का प्रतिनिधित्व करने वाले मंत्रीमंडल ही वाद- विवाद के ज़रिए पैरवी किया करते थे। परिणामस्वरूप कई दफा निर्दोष व्यक्तियों को सजा सुना दी जाती थी और कई गुनहगार व्यक्ति सम्मान के साथ बाइज्ज़त बरी कर दिए जाते थे।
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भारतवर्ष साधु, संतों, महात्माओं तथा पीर-पैगम्बरों की जन्म स्थली रहा है। यहाँ पर सृष्टि के आरंभ से ही मानव शांत स्वभाव के तथा भोले-भाले रहे हैं। “काम से काम” और “राम का नाम” यहाँ का मूल मन्त्र रहा है। यहाँ का आहार सात्विक रहा है। दिल्ली सदा से ही इस क्षेत्र की राजधानी रही है। लोग स्वतंत्र विचारों के और मर्यादा पुरूष रहे हैं । यहाँ की स्वतंत्रता विदेशी लोगों ने छीन ली थी जिससे लगभग 200 वर्षों तक यहाँ की जनता ने गुलामी के दिन जिए फिर भी लोगों ने वह सहा और आम जीवन जीते रहे।, उस समय के लोगों का मूल मन्त्र था “काम से काम” और “राम का नाम” और साथ में सादी वेशभूषा और उच्च विचार। गरीब व असहाय की सहायता करना, स्वंय भूखा रहकर अतिथि को भोजन छकाना इनकी इन्सानियत का एक अंग रहा है। 15 अगस्त 1947 को हम विदेशी गुलामी रूपी प्रेत से मुक्त हुए। आशा जागी थी कि अब हम बहुत सुखी होंगे। अंग्रेज लोगों का मन्त्र था “फूट डालो” और “राज करो” यानी Divide and Rule. इस मूल मन्त्र से अंग्रेज़ लगभग 200 वर्ष सफल रह कर अन्त में असफल हुए और रात्रि में भारत छोड़ कर भाग गए और जाते-जाते भारत के टुकड़े कर गए। अंग्रेज चले गए, फिर स्वराज का उदय हुआ कुछ दिन तक सूरज चमका परन्तु फिर धूल भरी आंधी ने अंधेरा कर दिया। ( यह प्रकरण संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पुस्तक न्यायालय की गिरती गरिमा से लिया गया है)।
न्यायालयों की गिरती गरिमा वर्तमान समय में भी कायम है। इस बात की पुष्टि करने के लिए हम कुछ आंकड़ों पर नजर डालेंगे।
वर्तमान समय में देश की सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्वीकारा है कि सेशन कोर्ट तक निचली अदालतों में 80 प्रतिशत तक भ्रष्ट जज कार्यरत हैं।
मिनिस्ट्री ऑफ लॉ एंड जस्टिस के मुताबिक 1 फरवरी, 2020 तक भारत के न्यायालयों में 3.65 करोड़ पेंडिंग कोर्ट केसेस हैं। जिसमें से लगभग 2.5 करोड़ क्रिमिनल केसेस हैं। अकेले इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही 7.46 लाख केसेस अभी भी पेंडिंग है। उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु और राजस्थान जैसे राज्यों में सबसे अधिक तो मेघालय, त्रिपुरा और मणिपुर जैसे राज्यों में सबसे कम पेंडिंग केस हैं।
हाल ही में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट अहमदाबाद द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक भारत में लगभग 70% महिला और पुरुषों को न्यायालयों में जाकर न्याय के लिए लड़ने की प्रक्रिया बेहद कठिन लगती है, वहीं 62% लोगों का मानना है कि वकील अपना काम ईमानदारी से नहीं करते।
किसी युग में वकालत इंग्लैंड का राजशाही पेशा रहा है। संभ्रांत घरानों के लोग वकालत करते थे। वकील के गाउन में पीछे दो जेब होती थी, पीछे की दो जेबों का अर्थ था अपने क्लाइंट से कोई राशि नहीं मांगी जाना अर्थात क्लाइंट जो चाहे अपनी इच्छानुसार जेब में पारिश्रमिक डाल जाए परंतु अब के वकील अपने ग्राहकों से मोटी फीस तो लेते हैं, और मौका पड़ने पर सामने वाली पार्टी से रिश्वत लेने से भी नहीं चूकते। ग्राहक से अधिक पैसा कमाने की एवज में केस लंबे खींचे जाते हैं , पूरी न्याय व्यवस्था में इतना अधिक भ्रष्टाचार फैला है कि अब सही समय पर न्याय मिलना एक अधूरे ख्वाब सा लगने लगा है।
दिन प्रतिदिन अखबार में हम सैकड़ों लोगों की कहानियां पढ़ते हैं। लोगों के साथ हो रहे सरासर अन्याय की इन कहानियों को पढ़ सुनकर देश की आधी आबादी का भरोसा देश की न्यायपालिकाओं से उठ चुका है। SA News का उद्देश्य भ्रष्टन्यायपालिका, सुस्त वकालत, कानून में फैली ऊपर से लेकर नीचे तक की रिश्वतखोरी, कानूनी डर , बिक चुके न्याय की वर्तमान स्थिति आपके सामने उजागर करना है। जैसे हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती वैसे ही पूरी न्यायपालिका भी खराब नहीं है । परंतु जिन जिन के हाथों में न्याय की डोर है वह ही उसमें गांठ लगाते रहे हैं। हम न्यायप्रिय सामाजिक समुदाय का हिस्सा हैं व आज भी न्यायालय और न्याय प्रणाली का सम्मान करते हैं। हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि न्यायपालिकाओं में फैले भ्रष्टाचारी जजों व वकीलों को जल्द से जल्द पदमुक्त किया जाए। ऐसे सम्माननीय पदों पर आसीन कानूनविद जब लोगों में न्याय के प्रति विश्वास जीवित रखने की बजाय न्याय का सरेआम मज़ाक बनाकर लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं जिससे साफ प्रतीत होता है भारत के कानून मंदिरों से लोगों का विश्वास उठ चुका है।
न्यायालयों को मंदिर की उपमा दी गई है और कानून को अंधा कहा जाता है ताकि वे अपना पराया जाति और रंग को देखकर भेदभावपूर्ण न्याय न करें। धरती पर रहने वाला मनुष्य भले अपने कार्य ईमानदारी से नहीं करता लेकिन ईश्वर द्वारा बनाए गए कानून व नियम अंधे नहीं होते। ईश्वर की अदालत में तिल तिल का लेखा जोखा होता है। इसी विषय में आदरणीय संत गरीबदास जी कहते हैं,
तुमने उस दरगाह का महल नहीं देखा, और यम राज के तिल तिल का लेखा।
जब किसी जीव की मृत्यु होती है तब उस आत्मा को धर्म राज के दरबार में ले जाया जाता है। वहां धर्मराज जो पूरे ब्रह्मांड का न्यायाधीश है जीव आत्मा के पूरे जीवन के सभी कर्मों का मुकदमा चलाते हैं। उस समय उस जीव के वकील के रूप में उसके गुरु वहां हज़ार होते हैं। परंतु हज़ार गुरू बनाने से अच्छा है एक सच्चा सतगुरू ढूंढ कर जीवन रहते उसे अपना गुरु बनाया जाए क्योंकि जन्म मरण रूपी दीर्घ रोग से छुटकारा पाने के लिए सतगुरु रूपी वकील बनाना अनिवार्य है। इसी विषय में पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी कहते हैं;
कर ले गुरु वकील मुकदमा भारी है।
यमपुर का टिकट कटेगा रे,
सारा कुनबा दूर हटेगा रे।
तेरे पास न कोई जुटेगा रे,
तेरी कौन करे तामील।।
वर्तमान समय में पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी के अवतार के रूप में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज धरती पर आए हुए हैं। ऐसे में देश और दुनिया के लोगों को चाहिए की संत रामपाल जी महाराज जी की शरण ग्रहण कर जन्म मरण के दीर्घ रोग से छुटकारा पाकर अपना कल्याण करवाएं।