राजद्रोह कानून (Sedition Law) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में फिर याचिका दायर हुई है, जिसमें इसे चुनौती दी गई है. वैसे खुद नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़े कहते हैं कि हाल के बरसों में इसके जितने ज्यादा मामले दर्ज करके लोगों को जेल में भेजा गया, उसमें ज्यादातर लोग कोर्ट में बरी हो गए.
भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत राजद्रोह के अपराध की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर हुई है. ये ऐसी पांचवीं याचिका है. याचिका में कहा गया है कि इस कानून का इस्तेमाल पत्रकारों को डराने, चुप करने और दंडित करने के लिए लगातार हो रहा है. ये कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की आजादी में बाधक बन रहा है.
राजद्रोह कानून (Sedition Law) | क्यों उठ रहे सवाल
राजद्रोह कानून को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं. हाल के बरसों में मनमाने तरीके से लोगों के लिखने, बोलने और सोशल मीडिया पर पोस्ट करने पर राजद्रोह जैसी धारा लगाई जा रही है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस पर चिंता जाहिर कर चुका है. लेकिन इसके बाद भी ये जारी है. जानते हैं कि आखिर क्या है राजद्रोह कानून, जो आजकल तमाम मामलों और घटनाओं के बाद खासा चर्चा में है.
क्या है राजद्रोह का क़ानून?
भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के अनुसार, जब कोई व्यक्ति बोले गए या लिखित शब्दों, संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा या किसी और तरह से घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने का प्रयास करता है या भारत में क़ानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष को भड़काने का प्रयास करता है तो वह राजद्रोह का आरोपी है.
कितनी सजा है
राजद्रोह एक ग़ैर-जमानती अपराध है. इसमें सज़ा तीन साल से लेकर आजीवन कारावास और जुर्माना है.
कितनों को सजा हुई और कितने बरी
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, भारत में साल 2015 में 30, 2016 में 35, 2017 में 51, 2018 में 70 और 2019 में 93 राजद्रोह के मामले दर्ज हुए. 2019 में देश में जो 93 राजद्रोह के मामले दर्ज हुए. 96 लोगों को गिरफ़्तार किया गया. इन 96 लोगों में से 76 आरोपियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की गई. 29 को बरी कर दिया गया. इन सभी आरोपियों में केवल दो को अदालत ने दोषी ठहराया.
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क्या इस कानून (Sedition Law) को खत्म कर देना चाहिए?
पिछले कुछ सालों से इस बात पर बहस चल रही है कि क्या देशद्रोह कानून को खत्म कर देना चाहिए. जुलाई 2019 में राज्य सभा में एक प्रश्न के जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा, “देशद्रोह के अपराध से निपटने वाले आईपीसी के तहत प्रावधान को ख़त्म करने का कोई प्रस्ताव नहीं है”. सरकार ने कहा, “राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए प्रावधान को बनाए रखने की जरूरत है.”
राजद्रोह कानून (Sedition Law) | विधि आयोग का परामर्श पत्र क्या था
भारतीय विधि आयोग या लॉ कमीशन ने 2018 में राजद्रोह के ऊपर एक परामर्श पत्र जारी किया. राजद्रोह के कानून को लेकर आगे क्या रास्ता निर्धारित किया जाना चाहिए इस पर लॉ कमीशन ने कहा कि “लोकतंत्र में एक ही गीत की किताब से गाना देशभक्ति का पैमाना नहीं है” और “लोगों को अपने तरीके से अपने देश के प्रति अपना स्नेह दिखाने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए” और ऐसा करने के लिए “सरकार की नीति में ख़ामियों की ओर इशारा करते हुए कोई रचनात्मक आलोचना या बहस” की जा सकती है.
कोर्ट ने सरकार से मांगा था जवाब
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दाखिल कई याचिकाओं में राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती दी गई है. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच का यह मानना था कि चूंकि इन याचिकाओं में केदारनाथ सिंह फैसले में दी गई व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए गए हैं इसलिए बेंच पहले इस पर विचार करेगी कि क्या इसे आगे की सुनवाई (Hearing) के लिए बड़ी बेंच को भेजा जाए या नहीं. कोर्ट ने सरकार से इस कानून की वैधता के साथ-साथ इसे बड़ी बेंच को भेजे जाने को लेकर भी अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा था.
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लार्जर बेंच को भेजने पर फैसला 10 मई को
केदारनाथ सिंह जजमेंट समय के साथ सही साबित हुआ है और ऐसे में आधुनिक सिद्धांतों के अनुसार है। केदारनाथ सिंह संबंधित वाद का फैसला पांच जजों की बेंच ने किया था और ऐसे में पांच जज या उससे ज्यादा जज ही उस मामले को सुन सकता है। कानून का अगर कहीं दुरुपयोग हुआ है तो उसका उदाहरण देकर जजमेंट का रिव्यू नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट 10 मई को इस तथ्य पर विचार करेगा कि क्या राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका लार्जर बेंच को भेजा जाए या नहीं।
राजद्रोह कानून (Sedition Law) | केंद्र सरकार ने क्या कहा
गृह मंत्रालय के अवर सचिव मृत्युंजय कुमार नारायण द्वारा दाखिल हलफनामे के अनुसार इस विषय पर अनेक विधिवेत्ताओं, शिक्षाविदों, विद्वानों तथा आम जनता ने सार्वजनिक रूप से विविध विचार व्यक्त किये हैं। हलफनामे में कहा गया, ‘‘इस महान देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाये रखने तथा उसके संरक्षण की प्रतिबद्धता के साथ ही यह सरकार राजद्रोह के विषय पर व्यक्त किये जा रहे अनेक विचारों से पूरी तरह अवगत है तथा उसने नागरिक स्वतंत्रताओं और मानवाधिकारों की चिंताओं पर भी विचार किया है।’’