इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच चल रहा संघर्ष वैश्विक चिंता का विषय बना हुआ है। इस युद्ध में लगातार बढ़ती हिंसा ने मध्य पूर्व में किए जा रहे शांति प्रयासों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। हाल ही में अमेरिका ने दोनों पक्षों को 21 दिनों के सीजफायर (युद्धविराम) का प्रस्ताव दिया था, लेकिन इजरायल ने इसे स्वीकार नहीं किया। इस बीच, इजरायल ने एक और हिजबुल्लाह कमांडर को मार गिराने का दावा किया है। आगे इस लेख में हम विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे कि इजरायल ने इस प्रस्ताव को क्यों ठुकराया और इस युद्ध की मौजूदा स्थिति क्या बनी हुई है।
मुख्य बिंदु
- 2 दशक पुराना है इस संघर्ष का इतिहास
- अमेरिका सहित विश्व समुदाय कर रहा शांति का प्रयास
- इजराइल का सीजफायर प्रस्ताव ठुकराने का मुख्य कारण
- हिजबुल्लाह के शीर्ष कमांडर को मार गिराने का दावा
- इजराइली हमलों से हिजबुल्लाह के संसाधनों पर असर
- दोनों पक्षों की बीच जारी विद्धविराम की संभावना कम
- आध्यात्म से स्थापित होगी विश्व शांति और होगा सनातन संस्कृति का पुनरुत्थान
इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष का इतिहास
इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच दशकों से संघर्ष चलता आ रहा है। हिजबुल्लाह एक लेबनानी शिया आतंकी संगठन है, जिसे ईरान का समर्थन प्राप्त है और इजरायल के खिलाफ इसकी गतिविधियाँ लंबे समय से जारी हैं। 2006 में हुए इजरायल-हिजबुल्लाह युद्ध के बाद से यह तनाव लगातार बना हुआ है, और हाल के महीनों में यह फिर से हिंसक और उग्र हो गया है।
अमेरिका के सीजफायर प्रस्ताव का उद्देश्य और उम्मीदें
अमेरिका ने दोनों पक्षों के बीच 21 दिन के सीजफायर का प्रस्ताव रखते हुए इसे शांति प्रयासों के लिए एक सकारात्मक कदम बताया था। इस प्रस्ताव का उद्देश्य दोनों पक्षों को एक मौका देना था ताकि वे शांति वार्ता के लिए बातचीत की टेबल पर आ सकें। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की चिंताओं का मुख्य कारण यह है कि इस संघर्ष का विस्तार हो सकता है और इससे क्षेत्रीय स्थिरता विश्व शांति को खतरा उत्पन्न हो सकता है।
इजरायल ने प्रस्ताव को क्यों ठुकराया?
इजरायल ने अमेरिका के इस सीजफायर प्रस्ताव को इन कारणों से खारिज कर दिया है:
1. हिजबुल्लाह को कमजोर करने की रणनीति: इजरायल की रणनीति स्पष्ट है कि वह हिजबुल्लाह को पूरी तरह से कमजोर करना चाहता है। इजरायल बिल्कुल भी नहीं चाहता कि युद्धविराम से हिजबुल्लाह को अपनी शक्ति और समर्थन फिर से जुटाने का मौका मिले।
2. आंतरिक सुरक्षा का सवाल: इजरायल का मानना है कि हिजबुल्लाह जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ किसी भी तरह का ढील देना उनके नागरिकों की सुरक्षा के साथ समझौता होगा। सीजफायर से हिजबुल्लाह को अपनी सैन्य क्षमताओं को फिर से तैयार करने का समय मिल सकता है, जिससे भविष्य में इजरायल पर और बड़े हमले हो सकते हैं।
3. अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद इजराइल की आत्मनिर्भरता: इजरायल अपने सैन्य निर्णयों में किसी भी तरह के अंतरराष्ट्रीय दबाव के सामने नहीं झुक रहा। इजराइल का मानना है कि उसे अपनी सुरक्षा और रणनीति के मामले में आत्मनिर्भर रहना होगा, खासकर तब, जब हिजबुल्लाह जैसे आतंकी संगठनों की कठिन चुनौती सामने हो।
4. इजराइल में सत्तारूढ़ गठबंधन का विरोध: इजराइल के सत्तारूढ़ गठबंधन के तीन शीर्ष मंत्रियों ने अमेरिका के इस युद्ध विराम प्रस्ताव का विरोध किया, जिसके कारण नेतन्याहू ने अपना रुख बदल दिया।
हिजबुल्लाह के खिलाफ इजरायल की ताज़ा सैन्य कार्रवाई
इजरायल ने हाल ही में एक और हिजबुल्लाह एरियल कमांडर मुहम्मद हुसैन सरूर को मार गिराने का दावा किया है। यह कार्रवाई इस बात का संकेत है कि इजरायल अपने सैन्य अभियानों में पूरी तरह से सक्रिय है और हिजबुल्लाह के नेतृत्व को खत्म करने की कोशिश कर रहा है। यह कदम इजरायल की इस रणनीति का हिस्सा है कि वह हिजबुल्लाह को कमांड स्तर पर कमजोर करे ताकि उसका संगठनात्मक ढांचा टूट जाए।
हिजबुल्लाह की प्रतिक्रिया और भविष्य की संभावनाएँ
हिजबुल्लाह ने इजरायल के इस कदम का कड़ा विरोध किया है और भविष्य में और भी बड़े हमलों की धमकी दी है। हालाँकि, हिजबुल्लाह के पास भी ताकतवर आधुनिक हथियार हैं, लेकिन इजरायल की ओर से लगातार हो रही हवाई और जमीनी कार्रवाइयों से उसके संसाधनों पर भी असर पड़ रहा है।
हिजबुल्लाह की रणनीति अधिकतर छापामार हमले और सीमा पार से रॉकेट दागने की रही है, लेकिन इजरायल की उन्नत सुरक्षा प्रणाली “आयरन डोम” इन हमलों को नाकाम करने में सक्षम रही है।
दोनों पक्षों के बीच अभी जारी रहेगा संघर्ष
अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय शांति और युद्धविराम की लगातार अपील कर रहे हैं। इजरायल अपने सुरक्षा हितों को सर्वोपरि मानते हुए इस संघर्ष को जारी रखने पर अड़ा हुआ है। हिजबुल्लाह के खिलाफ उसकी कठोर सैन्य रणनीति से यह स्पष्ट है कि इजरायल इस युद्ध को हिजबुल्लाह के पूरी तरह से कमजोर होने तक जारी रखेगा। फिलहाल, दोनों पक्षों के रुख को देखते हुए इस संघर्ष के जल्द खत्म होने की संभावना कम ही लगती है, और इससे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बना रहेगा।
आध्यात्म ही है विश्व शांति का एकमात्र विकल्प
आज पूरा विश्व तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ा हुआ है। विश्व के कई देशों के बीच संघर्ष लगातार जारी है। ऐसी स्थिति में आध्यात्म का रास्ता ही एकमात्र ऐसा विकल्प नजर आता है जिससे पुनः विश्व शांति स्थापित हो सकती है। आज पूरे विश्व में संत रामपाल जी महाराज आध्यात्म और सनातन संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए अथक प्रयास कर रहे, जिससे पुनः विश्व शांति की उम्मीदें नजर आ रही है।