Lal Bahadur Shastri Jayanti in Hindi: भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ-साथ 2 अक्टूबर को भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की भी जयंती मनाई जाती है। लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय उत्तर प्रदेश में हुआ था। लाल बहादुर शास्त्री ने अपना संपूर्ण जीवन सादगी के साथ बिताया था। लाल बहादुर शास्त्री का पूरा नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था। लाल बहादुर की शिक्षा हरीशचंद्र उच्च विद्यालय से हुई है। इन्होंने काशी विद्या पीठ से स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की, उसके बाद उन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद कांग्रेस पार्टी ने लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री पद का उत्तरदायित्व सौंपा था।
लाल बहादुर शास्त्री जयंती (Lal Bahadur Shastri Jayanti 2022) लाल बहादुर शास्त्री ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। कई बार उन्हे स्वाधीनता आंदोलनों में अपनी भूमिका के लिए जेल भी जाना पड़ा था। लाल बहादुर शास्त्री अपने राजनीतिक क्षेत्र में गोविंद वल्लभ पंत और जवाहरलाल नेहरू से प्रभावित थे। देश की आजादी के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के पद की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। शास्त्री जी का पूरा जीवन ही लोगों के लिए एक आदर्श है। 26 जनवरी, 1965 को लाल बहादुर शास्त्री ने देश के जवानों और किसानों का हौसला बढ़ाने के लिए ”जय जवान जय किसान” का नारा दिया था। जिसका अनुसरण स्वतंत्र भारत आज भी करता है। लाल बहादुर शास्त्री ने इसी तरह कई नारा और अपने अनमोल विचारों से लोगों को प्ररित करने का काम किया है।
लाल बहादुर शास्त्री के जयंती पर पढ़ें उनके विचार (Lal Bahadur Shastri Slogans)
- ”हम रहें न रहें ये देश मजबूत रहना चाहिए और ये झंडा लहराता रहना चाहिए।
- ”देश के प्रति निष्ठा सभी निष्ठाओं से पहले आती है और यह पूर्ण निष्ठा है क्योंकि इसमें कोई प्रतीक्षा नहीं कर सकता कि बदले में उसे क्या मिलता है।”
- ”हम सिर्फ खुद के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की शांति, विकास और कल्याण में विश्वास रखते हैं।” -” अगर कोई व्यक्ति हमारे देश में अछूत कहा जाता है तो भारत को अपना सर शर्म से झुकाना पड़ेगा।” ‘
Lal Bahadur Shastri Quotes in Hindi
- ” अगर मैं एक तानाशाह होता तो धर्म और राष्ट्र अलग-अलग होते।
- मैं धर्म के लिए जान तक दे दूंगा, लेकिन यह मेरा निजी मामला है।
- राज्य का इससे कुछ लेना देना नहीं है।”
- ‘लोगों को सच्चा लोकतंत्र और स्वराज कभी भी हिंसा और असत्य से प्राप्त नहीं हो सकता है।”
- ‘जो शासन करते हैं, उन्हे देखना चाहिए कि लोग प्रशासन पर किस तरह प्रतिक्रिया करते हैं। अंत में जनता ही मुखिया होती है।”
Lal Bahadur Shastri Jayanti: लाल बहादुर शास्त्री की राजनीतिक उपलब्धियां
भारत की स्वतंत्रता के बाद, लाल बहादुर शास्त्री यू.पी. में संसदीय सचिव बने। वह 1947 में पुलिस और परिवहन मंत्री भी बने। परिवहन मंत्री के रूप में, उन्होंने पहली बार महिला कंडक्टरों की नियुक्ति की थी। पुलिस विभाग के प्रभारी मंत्री होने के नाते, उन्होंने आदेश पारित किया कि पुलिस को पानी के जेट विमानों का उपयोग करना चाहिए और उग्र भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठियां नहीं खानी चाहिए। 1951 में, शास्त्री को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया, और उन्हें चुनाव से संबंधित प्रचार और अन्य गतिविधियों को करने में सफलता मिली। 1952 में, वे U.P से राज्यसभा के लिए चुने गए। रेल मंत्री होने के नाते, उन्होंने 1955 में चेन्नई में इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में पहली मशीन स्थापित की।
■ Also Read: Lal Bahadur Shastri Death Anniversary: जय किसान, जय जवान’ का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री की पुण्यतिथी आज
1957 में, शास्त्री फिर से परिवहन और संचार मंत्री और फिर वाणिज्य और उद्योग मंत्री बने। 1961 में, उन्हें गृह मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था, और उन्होंने भ्रष्टाचार निवारण समिति की नियुक्ति की। उन्होंने प्रसिद्ध “शास्त्री फॉर्मूला” बनाया जिसमें असम और पंजाब में भाषा आंदोलन शामिल थे। 9 जून, 1964 को, लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधान मंत्री बने। उन्होंने दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय अभियान श्वेत क्रांति को बढ़ावा दिया। उन्होंने भारत में खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिए हरित क्रांति को भी बढ़ावा दिया। हालांकि शास्त्री ने नेहरू की गुटनिरपेक्ष नीति को जारी रखा, लेकिन सोवियत संघ के साथ भी संबंध बनाए।
जब अमरीकी राष्ट्रपति का न्योता ठुकराया
- शास्त्री के काहिरा जाने से पहले अमरीकी राजदूत चेस्टर बोल्स ने उनसे मिलकर अमरीकी राष्ट्रपति लिंडन जॉन्सन का अमरीका आने का न्योता उन्हें दिया था.
- लेकिन इससे पहले कि शास्त्री इस बारे में कोई फ़ैसला ले पाते, जॉन्सन ने अपना न्योता वापस ले लिया था.
- इसका कारण फ़ील्ड मार्शल अयूब का अमरीका पर दबाव था. उनका कहना था ऐसे समय जब वो भारत के साथ नए समीकरण बनाने की कोशिश कर रहे हैं, अमरीका को तस्वीर में नहीं आना चाहिए.
- वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर लिखते हैं कि शास्त्री ने इस बेइज़्ज़ती के लिए जॉन्सन को कभी माफ़ नहीं किया.
- कुछ महीनों बाद जब वो कनाडा जा रहे थे तो जॉन्सन ने उन्हें बीच में वॉशिंगटन में रुकने का न्योता दिया लेकिन शास्त्री ने उसे अस्वीकार कर दिया.
Lal Bahadur Shastri Jayanti: जूनियर अफ़सरों को चाय सर्व करने वाले शास्त्री
- शास्त्री के साथ काम करने वाले सभी अफ़सरों का कहना है कि उनका व्यवहार बहुत विनम्र रहता था.
- उनके निजी सचिव रहे सीपी श्रीवास्तव उनकी जीवनी ‘लाल बहादुर शास्त्री अ लाइफ़ ऑफ़ ट्रूथ इन पॉलिटिक्स’ में लिखते हैं, “शास्त्री की आदत थी कि वो अपने हाथ से पॉट से प्याली में हमारे लिए चाय सर्व करते थे. उनका कहना था कि चूँकि ये उनका कमरा है, इसलिए प्याली में चाय डालने का हक़ उनका बनता है.”
- “कभी-कभी वो बातें करते हुए अपनी कुर्सी से उठ खड़े होते थे और कमरे में चहलक़दमी करते हुए हमसे बातें करते थे. कभी-कभी कमरे में अधिक रोशनी की ज़रूरत नहीं होती थी. शास्त्री अक्सर ख़ुद जाकर बत्ती का स्विच ऑफ़ करते थे. उनको ये मंज़ूर नहीं था कि सार्वजनिक धन की किसी भी तरह बर्बादी हो.”
पाकिस्तानी राष्ट्रपति और सोवियत के प्रधानमंत्री ने दिया कंधा
- 11 जनवरी, 1966 को जब लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में निधन हुआ तो उनके डाचा (घर) में सबसे पहले पहुंचने वाले शख़्स थे पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ाँ.
- उन्होंने शास्त्री के पार्थिव शरीर को देख कर कहा था, ‘हियर लाइज़ अ पर्सन हू कुड हैव ब्रॉट इंडिया एंड पाकिस्तान टुगेदर (यहाँ एक ऐसा आदमी लेटा हुआ है जो भारत और पाकिस्तान को साथ ला सकता था).’
- जब शास्त्री के शव को दिल्ली लाने के लिए ताशकंद हवाईअड्डे पर ले जाया जा रहा था तो रास्ते में हर सोवियत, भारतीय और पाकिस्तानी झंडा झुका हुआ था.
शास्त्री या मोरारजी
शास्त्री के पक्ष में सबसे बड़ी बात यह थी कि वे नेहरू के विश्वासपात्र थे. जब 1964 की शुरुआत में नेहरू जी बीमारी के कारण काम नहीं देख पा रहे थे तब उनका सारा काम शास्त्री जी ही देखा करते थे. नेहरू के बाद वैसे तो बहुत से नाम उछले लेकिन धीरे धीरे बात मोरारजी देसाई और शास्त्री पर आकर टिक गई है. उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष कामराज की सबसे बड़ी चिंता पार्टी की एकता को कायम रखना भी था.
आजादी की लड़ाई में 9 बार गए जेल
स्वतंत्रता संग्राम में लाल बहादुर शास्त्री कई बार शास्त्री भी गए. 1930 में हुए ‘नमक सत्याग्रह’ के चलते उन्हें ढाई साल जेल में रहने पड़ा. इसके बाद फिर स्वतंत्रता आंदोलन की वजह से उन्हें 1 साल जेल की सजा हुई. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें 4 साल तक जेल में रहने पड़ा. बाद में 1946 में उन्हें जेल से रिहा किया गया था. कुल मिलाकर करीब 9 बार शास्त्री जेल गए.
Also Read: Know About The Struggle For Truth And Non Violence On Gandhi Jayanti
जय जवान, जय किसान का नारा दिया
पाकिस्तान से युद्ध के दौरान ही देश में अनाज की भारी कमी थी. तभी देश का हौसला बुलंद करने के लिए शास्त्री ने ‘जय जवान, जय किसान ‘ का नारा भी दिया था. अन्न की कमी से जूझ रहे देश को पटरी पर लाने के लिए उन्होंने एक समय भूखे रहने की अपील भी की थी जिसे पूरे देश ने माना.
लाल बहादुर शास्त्री एक जवान सत्याग्रही (Lal Bahadur Shastri freedom struggle)
स्वतन्त्रता की लड़ाई में शास्त्री जी ने ‘मरो नहीं मारो’ का नारा दिया, जिसने पुरे देश में स्वतन्त्रता की ज्वाला को तीव्र कर दिया. 1920 में शास्त्रीजी आजादी की लड़ाई में कूद पड़े और ‘भारत सेवक संघ’ की सेवा में जुड़ गये. यह एक ‘गाँधी-वादी’ नेता थे, जिन्होंने सम्पूर्ण जीवन देश और गरीबो की सेवा में लगा दिया . शास्त्री जी सभी आंदोलनों एवम कार्यक्रमो में हिस्सा लिया करते थे, जिसके फलस्वरूप कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा . इन्होने सक्रिय रूप से 1921 में ‘अहसयोग-आन्दोलन’, 1930 में ‘दांडी-यात्रा’, एवम 1942 में भारत छोडो आन्दोलन में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई.