भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ ने रिटायरमेंट के बाद भी अपनी सेवा और ज्ञान को जारी रखने का निर्णय लिया है। उन्हें राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (NLU), दिल्ली में प्रतिष्ठित प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया है। यह न केवल उनकी विशेषज्ञता को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का माध्यम है, बल्कि भारत की विधि शिक्षा के क्षेत्र में यह एक महत्वपूर्ण कदम भी माना जा रहा है।
कब हुए थे रिटायर?
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ नवंबर 2024 में भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने दो साल के कार्यकाल के बाद सेवानिवृत्त हुए थे। सुप्रीम कोर्ट में उनके कार्यकाल को प्रगतिशील सोच, संवैधानिक मूल्यों और ऐतिहासिक फैसलों के लिए याद किया जाता है।
क्या होगा वेतनमान?
NLU दिल्ली के वेबसाइट के अनुसार, प्रतिष्ठित प्रोफेसर का वेतनमान AL-15 (₹1,82,200 – ₹2,24,100) के बीच होता है। न्यूनतम वेतन ₹1,82,200 के आधार पर अन्य भत्तों को जोड़कर उनका मासिक वेतन लगभग ₹2.5 लाख के आसपास बैठेगा।
सैलरी का विस्तृत ब्रेकडाउन
वेतन के साथ-साथ उन्हें 100210 रुपये का महंगाई भत्ता, 54660 रुपये HRA (दिल्ली एक्स कैटेगरी में आने के कारण), और 11160 रुपये यात्रा भत्ता मिलेगा। हालांकि, NPS, CGHS और आयकर कटौती मिलाकर करीब ₹70,000 घटेंगे, फिर भी उनका नेट वेतन लगभग ₹2,48,000 के करीब रहेगा। अन्य इंस्टीट्यूशनल भत्ते इससे अलग हैं।
ऐतिहासिक फैसलों के लिए मशहूर
चंद्रचूड़ का नाम सुप्रीम कोर्ट के उन न्यायाधीशों में लिया जाता है जिन्होंने सामाजिक और संवैधानिक बदलावों में प्रमुख भूमिका निभाई। अयोध्या भूमि विवाद, समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने, निजता के अधिकार की मान्यता और अनुच्छेद 370 जैसे बड़े मुद्दों पर उन्होंने ऐतिहासिक फैसले दिए।
NLU ने जताई खुशी
एनएलयू दिल्ली ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करके यह घोषणा की और कहा, “हम भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ का राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय दिल्ली में स्वागत करते हुए बेहद सम्मानित महसूस कर रहे हैं।”
शिक्षा जगत में नया युग
उनकी यह नियुक्ति भारत के कानूनी शिक्षा जगत में एक नई शुरुआत मानी जा रही है। एक ऐसे प्रोफेशनल और संवेदनशील न्यायाधीश का अनुभव अब छात्रों को क्लासरूम में मिलेगा, जो उन्हें न केवल कानून समझने में मदद करेगा बल्कि न्याय की सोच को भी गहराई से सिखाएगा।
आज के दौर में हम देखते हैं कि भौतिक तरक्की और उच्च पदों के बावजूद भी समाज में नैतिकता और शांति की भारी कमी है। यही कारण है कि केवल शिक्षित होना पर्याप्त नहीं, बल्कि सही ज्ञान और जीवन का उद्देश्य जानना भी उतना ही जरूरी है।
आज के दौर में जब शिक्षा केवल कैरियर और प्रतिष्ठा तक सीमित रह गई है, हरियाणा के एक संत जी बताते है कि जीवन का परम उद्देश्य जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाना है, जो केवल एक पूर्ण परमात्मा की सतभक्ति से संभव है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ जैसे विद्वान जब शिक्षा जगत में प्रवेश करते हैं, तो समाज को केवल कानूनी नहीं, नैतिक और वैचारिक दिशा भी मिलती है। परंतु यदि इसके साथ सत्य अध्यात्म ज्ञान का मेल हो जाए, तो यह जीवन में पूर्ण परिवर्तन ला सकता है।
समाज में बदलाव केवल कानून और संस्थानों के ज़रिये नहीं आता, बल्कि सोच में बदलाव के ज़रिये आता है। और यह तभी संभव हो पायेगा जब व्यक्ति सही और ग़लत की पहचान करना सीख जाए,
ऐसा ज्ञान, जो व्यक्ति को न केवल अपने कर्तव्यों का भान कराए बल्कि समाज में सकारात्मक योगदान देने के लिए प्रेरित करे, समय की आवश्यकता है। ऐसे ही मार्गदर्शन से न्यायप्रिय नेतृत्व और सशक्त समाज की नींव रखी जा सकती है। जब इंसान स्वयं के कर्मों को गहराई से समझने लगे, तभी वह किसी भी जिम्मेदारी को सच्चे मन से निभा सकता है—चाहे वह न्यायपालिका हो, शिक्षा हो या आम जीवन।
इसलिए आज के दौर में ज़रूरी है कि हम अपने अंदर झांके, अपने जीवन के उद्देश्य को समझें और एक ऐसे रास्ते की ओर बढ़ें जो आत्मिक उन्नति के साथ सामाजिक सद्भाव भी लाए। वर्तमान समय में एक महाराज जी का सत्य ज्ञान बड़ी चर्चाओं में हैं संतों का कार्य केवल प्रवचन देना नहीं, बल्कि समाज को दिशा देना होता है—और यही कार्य हरियाणा के एक प्रसिद्ध संत रामपाल जी महाराज वर्षों से करते हुए नजर आ रहे हैं।
उनके द्वारा दिए गए सतशास्त्र प्रमाणित ज्ञान से हजारों लोग नशा, अंधविश्वास, पाखंड और सामाजिक बुराइयों को त्यागकर एक संयमित, सद्भावी और शांतिपूर्ण जीवन की ओर अग्रसर हुए हैं।
उन्होंने भगवत गीता, वेद, पुराण और अन्य धर्मग्रंथों के आधार पर बताया है कि पूर्ण मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग क्या है और कौन-सा ज्ञान केवल आत्मा की नहीं, समाज की भी उन्नति कर सकता है।
यदि हम चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी केवल डिग्रियों से नहीं, बल्कि चरित्र और आत्मज्ञान से भी समृद्ध हो—तो समय है कि हम उस ज्ञान को समझें जो हमें आत्मा, कर्म और मोक्ष की सच्ची परिभाषा देता है।
संत रामपाल जी महाराज द्वारा दिखाया गया यह ज्ञानमार्ग न किसी धर्म का विरोध करता है, न ही किसी विशेष वर्ग को लक्ष्य बनाता है। यह तो बस उस सर्वोच्च ज्ञान की बात करता है जिससे समाज में शांति, न्याय और सद्भाव का स्थायी आधार बन सके।