Lal Bahadur Shastri Death Anniversary: पिछले 50 सालों से हर 11 जनवरी को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की पुण्य तिथि के रूप में मनाई जाती रही है। उनका जन्म वाराणसी में हुआ था। 50 साल बीत जाने के बाद भी उनकी मौत का वजह एक राज ही है। उन्होंने जय जवान-जय किसान का नारा दिया था, जिसने उन्हें अमर कर दिया।
देश के दूसरे प्रधानमंत्री और ‘जय किसान, जय जवान’ का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री का 11 जनवरी 1966 को ही निधन हुआ था. अपनी साफ सुथरी छवि और सादगी के लिए प्रसिद्ध शास्त्री ने प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद नौ जून 1964 को प्रधानमंत्री का पदभार ग्रहण किया था. वह करीब 18 महीने तक देश के प्रधानमंत्री रहे.
उनके नेतृत्व में भारत ने 1965 की जंग में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी. ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी.
Lal Bahadur Shastri Death: अभी तक रहस्यमय बनी है शास्त्री की मौत
लाल बहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य आज भी बना हुआ है। 10 जनवरी 1966 को पाकिस्तान के साथ ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के महज 12 घंटे बाद 11 जनवरी को तड़के 1 बजकर 32 मिनट पर उनकी मौत हो गई। बताया जाता है कि शास्त्री मृत्यु से आधे घंटे पहले तक बिल्कुल ठीक थे, लेकिन 15 से 20 मिनट में उनकी तबियत खराब हो गई। इसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें एंट्रा-मस्कुलर इंजेक्शन दिया। इंजेक्शन देने के चंद मिनट बाद ही उनकी मौत हो गई।
शास्त्री की मौत पर संदेह इसलिए भी किया जाता है, क्योंकि उनका पोस्टमॉर्टम भी नहीं किया गया था। उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने दावा किया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया। उनके बेटे सुनील का भी कहना था कि उनके पिता की बॉडी पर नीले निशान थे।
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लाल बहादुर तब ठीक से बोल भी नहीं पाते थे। सिर से पिता का साया उठ चुका था। मां बच्चों को लेकर अपने पिता के यहां चली आईं। पढ़ाई-लिखाई के लिए दूसरे गांव के स्कूल में दाखिला करा दिया गया। शास्त्री अपने कुछ दोस्तों के साथ आते-जाते थे। रास्ते में एक बाग पड़ता था। उस वक्त उनकी उम्र 5-6 साल रही होगी। एक दिन बगीचे की रखवाली करने वाला नदारद था। लड़कों को लगा इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा।
सब लपक कर पेड़ों पर चढ़ गए। कुछ फल तोड़े मगर धमाचौकड़ी मचाने में ज्यादा ध्यान रहा। इतने में माली आ गया। बाकी सब तो भाग गए मगर अबोध शास्त्री वहीं खड़े रहे। उनके हाथ में कोई फल नहीं, एक गुलाब का फूल था जो उन्होंने उसी बाग से तोड़ा था।
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