आज हम आपको Happy Krishna Janmashtami 2024 in Hindi (कृष्ण जन्माष्टमी) के बारे में विस्तार बताएँगे। लोकनायक के रूप में प्रतिष्ठित श्री कृष्ण जिनका बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक खासी लोकप्रियता है उनके विषय मे आज वे जानकारियां लेकर आये हैं जो अब तक न आपने सुनी और न पढ़ी होंगी। जानें अद्भुत 16 कलाओं के स्वामी श्री कृष्ण की लीलाओं का विषय में अद्भुत जानकारियां।
कृष्ण जन्माष्टमी (Happy Krishna Janmashtami) क्या है?
कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami 2024 in Hindi) नाम से ही स्पष्ट है कि भगवान कृष्ण जी का जन्म दिवस है। कृष्ण जन्माष्टमी हिन्दू धर्म के देव विष्णु के अवतार भगवान श्री कृष्ण से सम्बंधित है। माना जाता है कि श्री कृष्ण ने संसार में पाप और अत्याचार बढ़ जाने के कारण व राक्षसी प्रवृत्ति के राजा कंस को मारने के लिए धरती पर जन्म लिया। श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष में अष्टमी को रात्रि 12 बजे हुआ।
Janmashtami 2024 [Hindi] | कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है?
भगवान कृष्ण का जन्म कारावास में हुआ, देवता होने के कारण उनमें प्रबल शक्ति थी। राक्षस कंस को ये आकाशवाणी के माध्यम से ज्ञात हो चुका था कि देवकी की आठवीं सन्तान उसकी मृत्यु का कारण बनेगी। इस कारण अनेको नवजात बच्चों की हत्या कंस ने कराई। किन्तु जिसका विनाश निश्चित है उसे नहीं रोका जा सकता। भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और उसी रात उनके पिता वासुदेव ने उन्हें यशोदा के पास पहुंचाया। श्रीकृष्ण का लालन पालन माता यशोदा ने किया जबकि उनकी जन्मदात्री देवकी थीं। भक्तों के रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने कृष्ण का अवतार लिया। जगत की रीत है कोई ऐतिहासिक कार्य होता है तो वे प्रतिवर्ष उसका महोत्सव रूप में मनाने लगते हैं। कृष्णजन्माष्टमी का अर्थ है आज ही के दिन कृष्ण जी का जन्म हुआ किन्तु उसे दोबारा मनाने का कोई महत्व धर्मग्रन्थों में नहीं बताया गया है। आइए इस जन्माष्टमी जानें
- वास्तविक भक्ति स्वरूप
- पूर्ण परमात्मा की भक्ति विधि
- भागवत गीता से जुड़े तथ्य
- कृष्ण जी की भक्ति कैसे देगी मुक्ति?
Happy Krishna Janmashtami (कृष्ण जन्माष्टमी) 2024 में कब है?
प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी कृष्ण जन्माष्टमी (Happy Krishna Janmashtami Hindi) भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी को है। कैलेंडर में यह 26 अगस्त 2024 को है। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कृष्ण जन्म को यादगार रूप में मनाया जाने लगा है। इस दिन व्रत उपवास आदि भी लोकवेदानुसार रखे जाते हैं। किंतु यह कोई शास्त्र सम्मत कार्य नहीं है, गीत अध्याय 6 के श्लोक 16 में भी व्रत की मणाही है । आइए जानें कुछ रहस्य जिन्हें जानकर सही भक्ति की ओर अग्रसर होना आसान होगा।
Janmashtami 2024 [Hindi] | भगवान श्री कृष्ण: शास्त्रों में
हिंदू धर्म में लोग मुख्यतः 3 पुरुषों/देवों की भक्ति करते है। जो हैं रजगुण प्रधान भगवान ब्रह्मा, सतगुण प्रधान भगवान विष्णु, तमगुण प्रधान भगवान शिव। भगवान श्री कृष्ण को भगवान श्री विष्णु जी का ही आठवां अवतार कहा जाता है। श्री कृष्ण जी भगवान का अवतार होने के वजह से जन्म से ही लीला करने लगे थे। भगवान श्री कृष्ण का जीवन चरित्र देखें विष्णु जी के अवतार होने के कारण चमत्कारी शक्तियों से युक्त थे। लीला और चमत्कार के वजह से लोग उसे जानने लगे और अपना ईष्ट समझकर उनकी पूजा करने लगे। गीता के अध्याय 7 के श्लोक 14 और 15 में त्रिगुण साधना व्यर्थ बताई गई और इसे करने वाले मनुष्य नीच,मूढ़ और दूषित कर्म करने वाले बताए गए हैं।
Happy Krishna Janmashtami Hindi: कृष्ण जी का जीवन
संक्षेप में दृष्टिपात करने पर हम पाते हैं कि कृष्ण जी, देवकी-वासुदेव की आठवीं सन्तान थे। चूंकि उस समय देवकी और वासुदेव, राक्षस प्रवृत्ति के राजा कंस के कारावास में थे अतः कृष्ण जी को वासुदेव जी उसी रात यशोदा के पास छोड़कर आये। इस प्रकार कृष्ण जी का लालन-पालन यशोदा और नन्द जी की देखरेख में हुआ।
भगवान कृष्ण का अधिकांश जीवन राक्षसों से लड़ने और प्रजा की रक्षा करने में बीता। श्री कृष्ण आज जितने पूजनीय हैं उतने उस समय नहीं थे। उन्हें मारने की साज़िशों के तहत अनेको राक्षस उनके बाल्यकाल से ही भेजे जाने लगे थे। सुकून और सुख से इतर जीवन में अनियमितता थी। अंत मे श्री कृष्ण जी ने रहने के लिए द्वारका नगरी चुनी जहां एक ही द्वार था। दुर्वासा ऋषि के श्रापवश 56 करोड़ यादव आपस में लड़कर कटकर मर गए। और उसी श्रापवश त्रेतायुग की बाली वाली आत्मा जो द्वापरयुग में शिकारी थी उसके तीर मारने से श्री कृष्ण की मृत्यु हो गई। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण जीवन में बचते और बचाते रहे किन्तु सुकून से नहीं रह पाए अंततः श्रापवश मृत्यु को प्राप्त हुए।
Happy Krishna Janmashtami in Hindi: कृष्ण जी ने राक्षसों का संहार किया और लोगों की रक्षा की। उस समय कहर ढाने वाले राजा कंस जो कि वास्तव में कृष्ण जी के मामा थे, का संहार भी स्वयं श्री कृष्ण जी ने किया था। कृष्ण जी का नाम एक अन्य महत्वपूर्ण घटना के साथ आता है जो है महाभारत का युद्ध। यह युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था। श्री कृष्ण जी ने युद्ब को रोकने का यथासम्भव प्रयत्न किया था लेकिन युद्ध नहीं टला और महाभारत के युद्ध के रूप में होकर रहा जिसमे पांडव विजयी हुए। युद्ध आरम्भ होने के पूर्व अर्जुन के सारथी बने कृष्ण ने जब अर्जुन का हृदय व मन अपने प्रियजनों के संहार की कल्पना से विचलित होते देखा तब गीता ज्ञान सुनाया, किन्तु वास्तव में कृष्ण ने गीता का ज्ञान नहीं दिया बल्कि ब्रह्म यानी ज्योतिनिरंजन ने उनके शरीर मे प्रविष्ट होकर दिया। इसे हम प्रमाण सहित जानेंगे।
Happy Krishna Janmashtami 2024: भगवान कृष्ण की भक्ति कितनी सफल?
इस जन्माष्टमी आइए जानें कि भगवान कृष्ण की भक्ति कैसी करना चाहिए? पूर्ण परमात्मा कौन है? कृष्ण जी जो कि त्रिदेवों में से एक विष्णु जी के अवतार हैं, इनकी भक्ति करने से न तो पाप कटेंगे और न ही मुक्ति हो सकती है। स्वयं कृष्ण जी भी अपने कर्मो का फल भोगने के लिए बाध्य हैं। त्रेतायुग में विष्णु जी ने श्री राम के रूप में सुग्रीव के भाई बाली को पेड़ की ओट से मारा था। द्वापरयुग में वही बाली वाली आत्मा ने शिकारी रूप में कृष्ण जी को विषाक्त तीर मारा।
Happy Krishna Janmashtami mashtami 2024 Hindi: कर्मफल तो ये देवता अपने भी नहीं समाप्त कर पाते तो हमारे कैसे करेंगे? यदि आप सर्व पापों से मुक्ति चाहते हैं तो वेदों में वर्णित साधना करनी होगी, पूर्ण तत्वदर्शी सन्त से नामदीक्षा लेनी होगी। क्योंकि वेदों में वर्णित है कि पूर्ण परमात्मा साधक के सभी पापों को नष्ट करता है (यजुर्वेद, अध्याय 8, मन्त्र 13)।
कबीर साहेब कहते हैं
तीन देव की जो करते भक्ति, उनकी कदे न होवे मुक्ति ||
गीता अध्याय 7 के श्लोक 14 व 15 में भी तीन गुणों की साधना करने वाले मूर्ख और नीच बताए गए हैं।
Happy Krishna Janmashtami 2024 पर जानिए वास्तविक में गीता ज्ञानदाता कौन?
हमें सदा से ही बताया जा रहा है कि गीता का ज्ञान देने वाला भगवान श्रीकृष्ण है परंतु वास्तव में गीता का ज्ञान भगवान श्री कृष्ण ने नहीं बल्कि उनके पिता ब्रह्म ने दिया है, इसे ही ज्योतिनिरंजन या क्षर पुरुष भी कहते हैं। अभी तक जिन्होंने गीता का अर्थ निकाला है उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को ही गीता का ज्ञान दाता कहा है परंतु गीता जी में ही गीता ज्ञान दाता ने अपना परिचय दिया और कहा है कि मैं काल ब्रह्म हूं।
इसका प्रमाण गीता अध्याय 11 के श्लोक 32 और 47 में है। जब कृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाया तब अर्जुन ने डर से कांपते हुए पूछा भगवान आप कौन हैं। तब कृष्ण जी ने गीता अध्याय 11 के श्लोक 32 में कहा कि “अर्जुन! मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब सर्व लोकों को खाने के लिए प्रकट हुआ हूँ।”
गीता अध्याय 11 के श्लोक 46 में कहा है कि “हे हजार भुजाओं वाले आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए।” इस पर गीता अध्याय 11 के श्लोक 47 में कृष्ण रूप में कालब्रह्म ने कहा कि:
“अर्जुन मैंने प्रसन्न होकर तेरी दिव्य दृष्टि खोलकर यह विराट रूप तुझे दिखाया है जिसे तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने भी नहीं देखा।”
यहाँ एक बात प्रमाणित होती है जब पांडवों ने पांच गांवों की मांग की और कृष्ण जी ने इस प्रस्ताव को लेकर दुर्योधन के समक्ष उपदेश दिया तो उसने आग-बबूला होकर भरे दरबार में कृष्ण को गिरफ्तार करने के आदेश दिए थे। तब कृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाया था जिसे देखकर सभी भयभीत होकर कुर्सियों के नीचे छिपने लगे थे। कृष्ण अपना विराट रूप पहले ही दिखा चुके थे अतः अर्जुन का अध्याय 11 के श्लोक 31 में यह प्रश्न कि आप कौन हैं देव? स्पष्ट सिद्ध करता है कि वह विराट रूप कृष्ण का नहीं था।
अन्य बात यह स्पष्ट होती है कि कृष्ण जी केवल चार भुजाओं के स्वामी हैं। चार भुजाओं के स्वामी ब्रह्मा जी एवं श्री शिवजी भी हैं। वहीं आदि शक्ति आठ भुजाओं की स्वामिनी हैं और उनके पति यानी तीनों देवों के पिता ज्योति निरजंन की एक हजार भुजाएं हैं। जब ये देव अपने अवतार में होते हैं तो किसी भी परिस्थिति में अपनी भुजाओं से अधिक नहीं दिखा सकते।
Janmashtami 2024 | काल का अव्यक्त रूप
काल ब्रह्म वास्तव में ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पिता व माता प्रकृति यानी आदिशक्ति का पति है जो वास्तव में किसी के सामने नहीं आता और निराकार प्रभु के रूप में माना जाता है। उसने अपनी योगमाया से स्वयं को छुपाया हुआ है। इसलिए उसने अध्याय 11 के श्लोक 47 में कहा कि अर्जुन के अतिरिक्त किसी ने यह रूप पहले कभी नहीं देखा है। अन्य प्रमाण है कि कृष्ण जी विष्णु अवतार थे जिनकी केवल चार भुजाएं हैं फिर उस विराट रूप की हजार भुजाएं कैसे? विष्णु, ब्रह्मा और शिव की मात्र चार भुजाएं हैं, इनकी माता यानी आदिशक्ति की आठ भुजाएं हैं जिसके कारण इन्हें अष्टांगी भी कहा जाता है और दुर्गा के पति क्षर पुरुष, ज्योतिनिरंजन या काल ब्रह्म की हजार भुजाएं हैं, जो अव्यक्त रूप में रहता है।
Happy Krishna Janmashtami in Hindi: यह ज्ञान स्वयं काल ब्रह्म ने दिया क्योंकि महाभारत ग्रन्थ (गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित) के भाग 2, पृष्ठ, 800-801 में वर्णन है कि जब युधिष्ठिर को राजगद्दी सौंप कर कृष्ण वापस द्वारिका जाने लगे तो अर्जुन ने उनसे गीता का ज्ञान पुनः सुनने की इच्छा जताई क्योंकि वे भूल गए थे। इस पर कृष्ण जी ने उत्तर दिया कि हे अर्जुन तुम बुद्धिहीन हो, श्रद्धाहीन हो। उस अनमोल ज्ञान को क्यों भुला दिया मैं उस ज्ञान को नहीं सुना सकता क्योंकि मैंने वह योगयुक्त होकर दिया था। स्पष्ट है कि यदि युद्ध के समय कृष्ण योगयुक्त हुए तो शांति के समय भी होकर गीता ज्ञान सुना सकते थे किंतु ज्ञान तो क्षर पुरुष ने दिया था तो वे कैसे सुनाते।
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अन्य प्रमाण यह है कि कृष्ण जी ने महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन को उकसाया कि यदि युद्ध मे विजयी हुए तो सारा राज आपका और यदि मारे गए तो स्वर्गप्राप्ति और युद्ध के लिए प्रेरित किया तथा कोई पाप न लगने की बात भी कही (अध्याय 2, श्लोक 37-38) । जबकि वही कृष्ण जी ने युद्ध रोकने की यथासम्भव चेष्टा पहले की थी तथा दुर्वासा ऋषि के यादव कुल के नाश के श्रापवश लगे तीर से अपने शरीर को त्यागते समय कृष्ण जी ने पांचों पांडवों को बताया कि युद्ध मे हुए मारकाट का पापकर्म अत्यधिक होने के कारण अपना शरीर हिमालय में गला देने के लिए कहा।
तब अर्जुन ने अश्रु भरकर पूछा कि हे भगवन आपने कहा था हमारे दोनों हाथों में लड्डू हैं यदि हम मारे गए तो स्वर्ग का सुख और जीत गए तो पृथ्वी का सुख किन्तु आप अब हमें हिमालय जाने कह रहे हैं। तब कृष्ण जी ने अर्जुन को कहा कि तुम मेरे प्रिय हो मैं तुम्हे वास्तविक स्थिति बताता हूँ कि कोई खलनायक जैसी अन्य शक्ति है जो हमे यन्त्र की तरह नचाती रहती है। इतना कहकर कृष्ण जी ने आंखों में अश्रु लिए अपने प्राण त्याग दिए। उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध है कि गीता ज्ञान कृष्ण ने नहीं दिया बल्कि उनके शरीर में प्रविष्ट होकर कालब्रह्म/ ज्योति निरजंन ने दिया।
Janmashtami 2024 | गीतानुसार ब्रम्हा, विष्णु, शिव की शक्ति
गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 के श्लोक 12 से लेकर 15 तक तीनों गुणों की शक्ति को विस्तार पूर्वक बताया। इसमें कहा गया है कि तीनो गुण ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी के रजोगुण, सतगुण और तमगुण काल ब्रह्म के वश में रहते हैं तथा उनके बताये अनुसार ही कार्य करते हैं। लोगों को कर्मों का दंड देता है तीनों गुण ब्रह्मा, विष्णु, महेश किसी का कर्म ना बढ़ा सकते हैं और ना ही घटा सकते हैं। ये विधि के विधानानुसार कार्य करने के लिए बाध्य हैं। श्रीमद्देवीभागवत पुराण में तीनों गुणों की जन्म मृत्यु का भी वर्णन है। गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 के श्लोक 12 और 13 में कहा है कि 3 गुण और माया यानी प्रकृति जो कार्य करता है उसका निमित काल ब्रह्म स्वयं होता है। ऐसे ही तीनों गुण ब्रह्मा विष्णु महेश तथा माता प्रकृति/दुर्गा कार्य करते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि ब्रह्मा विष्णु महेश और माता दुर्गा से भी ईष्ट देव काल ब्रह्म हैं।
Happy Krishna Janmashtami Hindi: कालब्रह्म से ऊपर है कोई और
गीता अध्याय 8 के श्लोक 16 में कहा है कि ब्रह्मलोकपर्यंत सभी पुनरावृत्ति में हैं अर्थात जन्मते और मरते हैं, स्पष्ट है कि इनकी आराधना से हमारी मुक्ति नहीं हो सकती। कालब्रह्म से ऊपर अक्षर पुरुष है और सबसे ऊपर है परम अक्षर पुरुष जिसे वेदों में कविर्देव कहा गया है। गीता ज्ञानदाता ने स्वयं अध्याय 18 के श्लोक 62 व 66 में किसी अन्य परमेश्वर की ओर जाने के लिए इशारा किया है जहां जाकर साधक लौटकर इस संसार मे नहीं आता। स्वयं काल ब्रह्म ने गीता अध्याय 7 के श्लोक 18 में अपनी भक्ति को अनुत्तम बताया है।
श्रीमद्भगवत गीता में है 3 भगवानों का वर्णन
वास्तव में गीता ज्ञान दाता ने गीता में सर्वोच्च प्रभु का वर्णन किया है उन्होंने बताया कि वास्तव में प्रभु 3 ही है जिसमें से एक वह स्वयं है। (याद रहे यहां तीन गुणों के स्वामी ब्रह्मा, विष्णु, महेश की बात नहीं कि जा रही है)
- क्षर पुरुष (ब्रह्म)
- अक्षर पुरुष (परब्रम्ह)
- परम अक्षर पुरुष (पूर्ण ब्रह्म)
इसमें से सर्वशक्तिमान प्रभु परम अक्षर पुरुष हैं जिसे गीता अध्याय 15 के 16 व 17 में वास्तव में अविनाशी कहा गया है। गीता ज्ञान दाता ने अपने आप को इस परम अक्षर ब्रह्म की शरण में कहा है। गीता ज्ञान दाता सभी को इस पूर्ण परमात्मा की शरण में जाने को कह रहा है जो वास्तव में अविनाशी हैं। गीता अध्याय 18 के श्लोक 62 से 66 में भी उसी अन्य परमेश्वर की ओर इशारा किया गया है।
Krishna Janmashtami in Hindi: पूर्ण परमात्मा की भक्ति विधि
पवित्र गीता अध्याय 16 के श्लोक 23,24 में गीता ज्ञानदाता कहते हैं कि ब्रह्मा,विष्णु, महेश नाशवान है और इनकी भक्ति करना व्यर्थ है। गीता जी में मनमाने आचरण जैसे उपवास, आडम्बरों को भी व्यर्थ कहा है। केवल शास्त्र अनुकूल साधना ही उत्तम बताई है। गीता ज्ञानदाता ने अध्याय 7 के श्लोक 18 में अपनी भक्ति को भी अनुत्तम बताया है।
Happy Krishna Janmashtami in Hindi: गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 8 श्लोक 16 में अपने आप को नाशवान यानि जन्म-मरण के चक्र में सदा रहने वाला बताया है। कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं। तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। अपने जन्म को गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 4 श्लोक 9 एवं अध्याय 10 के श्लोक 2 में आलौकिक बताया है जो कि सत्य है लेकिन उसने ये स्पष्ट कर दिया कि वह स्वयं भी जन्म मरण में है। गीता ज्ञानदाता ने परमात्मा की भक्ति के विषय में गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता किसी तत्वदर्शी संत की खोज करने को कहता है। इस से सिद्ध होता है कि गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) द्वारा बताई गई भक्ति विधि पूर्ण नहीं है तथा अधूरी है।
अतः हमें चाहिए कि तीन देवो की भक्ति में न फंसे और पूर्ण तत्वदर्शी सन्त से नामदीक्षा लेकर शास्त्रानुकूल भक्ति करें। पूर्ण परमात्मा की भक्ति ही मोक्ष दिला सकती है क्योंकि अन्य सभी जन्म-मरण के चक्र में स्वयं ही फंसे हैं। कबीर साहेब कहते हैं-
तीन गुणों की भक्ति में, ये भूल पड़ो संसार |
कहें कबीर निजनाम, बिना कैसे उतरो पार ||
तत्वदर्शी संत की पहचान
पवित्र गीता जी के ज्ञान को समझने पर यह स्पष्ट होता है कि पूर्ण परमात्मा की भक्ति को सही विधि गीता ज्ञान दाता को भी नहीं पता अतः उन्होंने तत्वदर्शी संत की खोज करने के लिए कहा। वास्तव में तत्वदर्शी संत की पहचान गीता अध्याय 15 के श्लोक 1 से लेकर 4 व 16, 17 में बताया गयी है। यजुर्वेद, अध्याय 19, मन्त्र 25, 26,30; सामवेद संख्या 822 उतार्चिक अध्याय 3 खण्ड 5 श्लोक 8 आदि में भी पूर्ण सन्त की पहचान दी गई है।
600 वर्ष पहले कबीर परमेश्वर ने स्वयं तत्वदर्शी संत के रूप में प्रकट होकर गीता ज्ञान दाता के वास्तविक ज्ञान को उजागर किया और पूर्ण परमात्मा की भक्ति विधि बताई। तत्वदर्शी सन्त एक समय पर सभी ब्रह्मांडों में एक ही होता है। वर्तमान में तत्वदर्शी सन्त जगतगुरु रामपाल जी महाराज हैं। पूर्ण तत्वदर्शी सन्त के उपरोक्त सभी प्रमाण केवल सन्त रामपाल जी महाराज पर खरे उतरते हैं। सन्त रामपाल जी महाराज जी ने सभी धर्मों के धर्मग्रंथों को खोलकर बताया, वेदों में वर्णित गूढ़ रहस्यों से अवगत कराया और पूरे ज्ञान का सार बताया है।
और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान | जैसे गोला तोब का, करता चले मैदान ||