नमस्कार दर्शकों! खबरों की खबर का सच स्पेशल कार्यक्रम में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। इस बार हम धरती के स्वर्ग “कश्मीर” के बारे में चर्चा करेंगे और साथ ही जानेंगे की आखिर कैसे कश्मीर में स्वर्ग जैसी शांति को स्थापित होगी तो चलिए शुरू करते हैं आज की हमारी स्पेशल पड़ताल।
दोस्तों , बादलों की सफेद चादर ओढ़े, झरनों, नदियों, वादियों और पहाड़ों के बीच बसे इस अद्भुत स्थान को दुनिया “कश्मीर” के नाम से जानती है। इसकी सुंदरता और अद्भुत नजारों के कारण इसे धरती के स्वर्ग का दर्जा दिया गया है। लोग कहते थे धरती पर यदि कहीं स्वर्ग है तो वह कश्मीर है और यह उपमा उसे उसकी खूबसूरती के कारण दी गई थी। कश्मीर झेलम नदी की घाटी में बसा है। भारतीय कश्मीर घाटी में छः ज़िले हैं : श्रीनगर, बड़ग़ाम, अनन्तनाग, पुलवामा, बारामुला और कुपवाड़ा। कश्मीर हिमालय पर्वती क्षेत्र का भाग है। जम्मू खण्ड से और पाकिस्तान से इसे पीर-पंजाल पर्वत-श्रेणी अलग करती है। यहाँ कई सुन्दर सरोवर हैं, जैसे डल, वुलर और नगीन। यहाँ का मौसम गर्मियों में सुहावना और सर्दियों में बर्फीला होता है।
भारत की आज़ादी के समय कश्मीर की वादी में लगभग 15 % हिन्दू थे और बाकी मुसलमान। आतंकवाद शुरू होने के बाद आज कश्मीर में सिर्फ़ 4 % हिन्दू रह गये हैं, यानि कि वादी में 96 % मुस्लिम बहुमत है। ज़्यादातर मुसलमानों और हिन्दुओं का आपसी बर्ताव भाईचारे वाला है।अक्साई चिन, POK, जम्मू, लेह, और लद्दाख को मिलाकर अखंड कश्मीर बनता है जिसे खूबसूरती का घर भी कहा जाता है।
कश्मीर की राजनीति में आया महत्वपूर्ण बदलाव
भारतीय संसद ने 5 अगस्त 2019 को इस राज्य की राजनीतिक स्थिति में भारी बदलाव करते हुए विधानसभा सहित केंद्रशासित प्रदेश बना दिया तथा लद्दाख को भी जम्मू कश्मीर से अलग करके उसे भी अलग केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया ।
दुर्भाग्य यह है कि वर्तमान समय में कश्मीर का बंटवारा कई हिस्सों में हो चुका है। सन 1947 में POK यानी पाकिस्तान ओक्यूपाइड कश्मीर और सन 1962 अक्साई चिन कश्मीर से अलग हो गए। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के खत्म होने के साथ अनुच्छेद 35-ए भी खत्म हो गया। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग अलग केंद्र शासित प्रदेशों में तब्दील कर दिया गया।
कश्मीर नगरी पहले से ही टूरिस्टों के लिए आकर्षण का केंद्र रही है। देश विदेश से सैकड़ों लोग प्रतिवर्ष यहां घूमने आते है। किंतु पिछले कई दशकों से कश्मीर में अशांति का माहोल होने से लोग यहां आने से भी डरते है। इन दिनों कश्मीर में स्थिति इतनी नाज़ुक है की न जाने कब इमरजेंसी और कर्फ्यू लगा दिया जाए।
अब हम कश्मीर के इतिहास पर एक नज़र डालते हैं
माना जाता है कि कश्मीर का नाम कश्यप ऋषि के नाम पर पड़ा था। इस समय कश्मीर के सभी मूल निवासी हिंदू हुआ करते थे। कश्मीरी पंडितों की संस्कृति लगभग 6000 साल पुरानी मानी जाती है, इन्हें कश्मीर के मूल निवासी भी माना जाता है। कश्मीर के मूल निवासियों को डोगरा कहा जाता हैं, वहीं यहां की मूल भाषा को डोगरी कहा जाता है।
माना जाता है की 14वीं शताब्दी में तुर्किस्तान से आए एक क्रूर मंगोल मुस्लिम आतंकी दुलुचा ने 60,000 लोगों की सेना के साथ कश्मीर पर आक्रमण किया और कश्मीर में धर्मांतरण करके मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना की। दुलुचा ने सैकड़ों नगरों और गांवों को नष्ट कर हजारों हिंदुओं का नरसंहार किया। हज़ारों हिंदुओं का धर्मपरिवर्तन कर उन्हें जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया। सैकड़ों हिंदू जो इस्लाम कबूल नहीं करना चाहते थे, उन्होंने आत्महत्या कर ली। ऐसे में कई लोग वहां से जान बचाकर भाग निकले। जम्मू, कश्मीर और लद्दाख पहले हिंदू शासकों फिर बाद में मुस्लिम सुल्तानों के अधीन रहा। कश्मीर पर मुगल साम्राज्य, अफगान साम्राज्य और पंजाब के सिख साम्राज्य ने बारी बारी से शासन किया।
आखिर क्यों धरती के स्वर्ग माने जाने वाले कश्मीर ने सैकड़ों वर्षों से शांति का माहोल नहीं देखा?
दोस्तों! सुंदरता शांति का प्रतीक नहीं हो सकती क्योंकि हर सुंदर और चमकदार चीज़ पर सभी अपना आधिपत्य चाहते हैं और यही अधिकार और शासन करने की भावना अशांति को जन्म देती है। कश्मीर क्षेत्र तीन देशों के बीच का विवादित क्षेत्र है। भारत, पाकिस्तान और चीन के पास कश्मीर के कुछ हिस्सों का कब्ज़ा है। यदि हम पाकिस्तान के कब्जे़ की बात करें तो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का कुल क्षेत्रफल करीब 13 हजार वर्ग किलोमीटर है जो की भारतीय कश्मीर से 3 गुना बड़ा है। इस क्षेत्र में करीब 30 लाख लोग रहते हैं। पीओके की सीमा पश्चिम में पाकिस्तान के पंजाब और खैबर पख्तूनवाला से, उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान के वखन कॉरिडोर से, उत्तर में चीन के जिंगजियांग ऑटोनॉमस रीजन से और पूर्व में जम्मू-कश्मीर और चीन से मिलती है।
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पीओके को प्रशासनिक तौर पर 2 हिस्सों में बांटा गया है जिन्हें आज़ाद कश्मीर और गिलगिट-बाल्टिस्तान के नाम से जाना जाता है। चीन द्वारा किए गए कब्ज़े वाले क्षेत्र को अक्साई चिन कहा जाता है। यह इलाका महाराजा हरिसिंह के समय में कश्मीर का हिस्सा था। 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध के बाद कश्मीर के उत्तर-पूर्व में चीन से सटे इलाके अक्साई चिन पर चीन ने कब्जा कर लिया। पाकिस्तान ने चीन के इस कब्जे को मान्यता दी है। 1950 के दशक से यह क्षेत्र चीन के क़ब्ज़े में है पर भारत इस पर अपना दावा जताता है और इसे जम्मू और कश्मीर राज्य का उत्तर पूर्वी हिस्सा मानता है। अक्साई चिन जम्मू और कश्मीर के कुल क्षेत्रफल के पांचवें भाग के बराबर है। चीन ने इसे प्रशासनिक रूप से शिनजियांग प्रांत के काश्गर विभाग के कार्गिलिक ज़िले का हिस्सा बनाया है।
जम्मू-कश्मीर और अक्साई चिन को अलग करने वाली रेखा को लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा कहा जाता है। इसके अलावा जो बचा हुआ हिस्सा है उस पर भारत का कब्जा है, जिसमें जम्मू, लेह और लद्दाख शामिल हैं।
कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआत कब और कैसे हुई
औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता के बाद भारत और पाकिस्तान ने कश्मीर के राजशाही राज्य के लिए युद्ध किया। युद्ध के अंत में भारत ने कश्मीर के सबसे महत्वपूर्ण भागों पर कब्ज़ा किया। जबकि वहां हिंसा की छिटपुट गतिविधियों को देखा जा सकता था लेकिन कोई संगठित उग्रवाद आंदोलन नहीं था।
1987 के एक विवादित चुनाव के साथ कश्मीर में बड़े पैमाने पर सशस्त्र उग्रवाद की शुरूआत हुई, जिसमें राज्य विधानसभा के कुछ तत्वों ने एक आतंकवादी खेमे का गठन किया, जिसने इस क्षेत्र में सशस्त्र विद्रोह में एक उत्प्रेरक के रूप में भूमिका निभाई।भारत द्वारा पाकिस्तान के इंटर इंटेलिजेंस सर्विसेज द्वारा जम्मू और कश्मीर में लड़ने के लिए मुज़ाहिद्दीन का समर्थन करने और प्रशिक्षण देने के लिए दोषी ठहराया जाता रहा है। बहरहाल, पाकिस्तान और भारत के बीच शांति प्रक्रिया तेजी से बढ़ने के क्रम में राज्य में उग्रवाद से संबंधित मौतों की संख्या में थोड़ी कमी हुई है परंतु अभी खत्म नहीं हुई हैं।
आतंकीय गतिविधियों का कारण है तीन देशों की विवादित सीमा
तीन देशों की विवादित सीमा होने के चलते यहां पर अकसर आतंकीय गतिविधि होती ही रहती हैं। बॉर्डर पर भी सीज़ फायर का उलंघन मानो एक आम बन गई है। कश्मीर में रहने वाले आम नागरिकों के जीवन में अशांति का मूल कारण यह आतंकी गतिविधियां ही हैं। घाटी में पिछले कुछ दिनों से आम लोगों को निशाना बना कर किए जाने वाले आतंकी हमलों का जारी रहना एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। पिछले रविवार को कुलगाम में बिहार के दो प्रवासी मजदूरों की हत्या इन आतंकी घटनाओं की ताजा कड़ी है। इससे एक दिन पहले शनिवार को ही उत्तर प्रदेश के एक कारपेंटर और बिहार के एक फेरीवाले की हत्या हुई थी। 24 घंटे में हुई इन चार हत्याओं ने घाटी में रह रहे प्रवासी मजदूरों के बीच भय का माहौल बना दिया है। आतंकी हमलों के डर से प्रवासी मजदूर कश्मीर में वापिस लौटने से इंकार कर रहे हैं। इन्ही गतिविधियों के चलते 24 अक्टूबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 3 दिन का कश्मीर दौरा किया।
दौरे पर मंत्री जी ने कहा कि सरकार का उद्देश्य जम्मू कश्मीर से आतंकवाद का सफाया करने और नागरिकों की हत्याओं पर रोक लगाने का है। उन्होंने कहा कि किसी को इस केंद्रशासित प्रदेश में शांति और विकास को बाधित नहीं करने दिया जाएगा। मंत्री जी ने कहा की सन 2004 से 2014 के बीच कश्मीर में कुल 2,081 आम नागरिक मारे गये थे। जबकि 2014 से इस साल सितंबर तक दुर्भाग्य से 239 आम नागरिकों की जान चली गयी। हिंसा के आंकड़े दिन प्रतिदिन कम तो हो रहे हैं लेकिन सरकार इससे संतुष्ट नहीं है। कश्मीर में रहने वाले नागरिक अपने आप को कभी महफूज नहीं समझते। बच्चे स्कूल जाने से डरते हैं। बहन बेटियां घर से अकेले बाहर नहीं निकल सकती। इस बात की कोई गारंटी नहीं होती की कब किस जगह बंब ब्लास्ट या फायरिंग हो जाए। कब अपने परिवार के किसी सदस्य को हमेशा के लिए खोना पड़ जाए। कभी हिंसा तो कभी प्राकृतिक आपदा के कारण कश्मीर में लोगों का जीवन आतंक और सदमे में बीत रहा है। कभी अचानक बंबारी और खूनी दहशत हो जाती है तो कभी बादल का फटजाता है, तो कभी भूकंप आ जाता है। ऐसी गंभीर स्थिति में रहने वाले आम नागरिक धरती के स्वर्ग में भी नरक जैसा अनुभव करते हैं।
★नेताओं के लिए चुनावी मुद्दा बनने वाला “कश्मीर” आज भी मासूम नागरिकों की हत्या और चीखों से गूंज रहा है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में आज भी आम नागरिक अपने आप को महफूज़ नहीं समझते। आइए जानते हैं की आखिर किस प्रकार सदियों से चल रहे इस हाहाकार को और परतंत्रता की बेड़ियों को समाप्त किया जा सकता है? धरती के स्वर्ग माने जाने वाले कश्मीर में स्वर्ग जैसी सुख व शांति कैसे स्थापित की जा सकती है?
कई भविष्यव्यकताओं का यह मानना है की कश्मीर की समस्या का हल केवल अध्यात्म से ही निकाला जा सकता है। भविष्यवक्ताओं का कहना है की एक महापुरुष के अद्वितीय आध्यात्मिक ज्ञान पर अमल करने से कश्मीर क्या पूरे विश्व में शांति व अमल कायम किया जा सकता है। उस संत के तत्वज्ञान से पूरे विश्व को पुनः एक किया जा सकता है।
SA न्यूज़ की टीम ने पूर्ण परमात्मा के संविधान रूपी सद्ग्रंथों को जब टटोला तो पाया की सभी धर्मों के सद्ग्रंथ बताते हैं कि तत्वज्ञान केवल तत्वदर्शी संत ही प्रकट कर सकता है। तत्वदर्शी संत की भूमिका करने स्वयं पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ही धरती पर अवतार लेकर आते हैं। हमारी टीम ने वर्तमान समय के सभी धर्मगुरुओं, वक्ताओं, नेताओं, पंडितों–महंतों , मुनियों व ऋषियों के ज्ञान की तुलना की और उनमें से एक महापुरुष का ज्ञान सब से हटकर पाया। इस महापुरुष के ज्ञान की प्रामाणिकता के लिए हमारी टीम ने सभी धर्मों के सद्ग्रंथों से जांच की और 100 की 100 सत्य पाई। अधिक प्रामाणिकता के लिए हमने सुप्रसिद्ध भविष्यव्यकता और संतों की भविष्यवाणियों को भी खंगाला और पाया की सभी ने एक ही महापुरुष के आगमन के बारे में बात कही है।
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वह महापुरुष और कोई नहीं जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी हैं। हम ऐसा इसलिए कह पा रहे हैं क्योंकि संत रामपाल जी महाराज के तत्वज्ञान का लोहा आज पूरा विश्व मानने को मजबूर हो गया है। जिनके अद्वितीय ज्ञान से सैकड़ों लोगों ने चोरी, जारी, ठगी, रिश्वत, नशा, मिलावट आदि बुराइयों को त्याग दिया है। संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताए गए भक्तिमार्ग पर चलने से लाखों लोगों को अद्भुत लाभ प्राप्त हो रहे हैं। केंसर, एड्स, टीबी, डायबिटिज़ आदि जैसी लाइलाज बीमारियों से लोग निजात पा रहे हैं। समाज में व्याप्त सभी बुराइयों को त्यागकर संत जी के अनुयाई आर्थिक, मानसिक, भौतिक और शारीरिक सुख प्राप्त कर रहे हैं।
इसी विषय में पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी अपनी अमृतमयी वाणी में बताते हैं,
और ज्ञान सब ज्ञानडी कबीर ज्ञान सो ज्ञान।
जैसे गोला तोब का करता चले मैदान।।
पाँच हजार अरू पाँच सौ पाँच जब कलयुग बीत जाय।
महापुरूष फरमान तब, जग तारन कूं आय।।
हिन्दु तुर्क आदि सबै, जेते जीव जहान।
सत्य नाम की साख गही, पावैं पद निर्वान।।
यथा सरितगण आप ही, मिलैं सिन्धु मैं धाय।
सत्य सुकृत के मध्य तिमि, सब ही पंथ समाय।।
जब लग पूर्ण होय नहीं, ठीक का तिथि बार।
कपट-चातुरी तबहि लौं, स्वसम बेद निरधार।।
सबही नारी-नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत।
कपट चातुरी छोड़ि के, शरण कबीर गहंत।।
एक अनेक ह्नै गए, पुनः अनेक हों एक।
हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक।।
घर घर बोध विचार हो, दुर्मति दूर बहाय।
कलयुग में सब एक होई, बरतें सहज सुभाय।।
कहाँ उग्र कहाँ शुद्र हो, हरै सबकी भव पीर(पीड़)।।
सो समान समदृष्टि है, समर्थ सत्य कबीर।।
बंदीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी के पदचिन्हों पर चलते हुए आज समाज सुधार के कार्य विश्वभर में किए जा रहे हैं। देश दुनिया की सरकारों को चाहिए की संत रामपाल जी महाराज की शरण ग्रहण कर विश्व शांति के अद्भुत समाज सुधार कार्य में अपना सहर्ष सहयोग दें। हमें विश्वास है कि संत रामपाल जी के इस अद्भुत और अद्वितीय तत्वज्ञान से कश्मीर ही नहीं पूरी धरती स्वर्ग समान हो सकती है। पूरी पृथ्वी पर आपसी भाईचारा व प्रेम स्थापित किया जा सकता है। विश्वभर से सीमा की लड़ाई, आतंकवादी गतिविधियां व आपसी रागद्वेश केवल संत रामपाल जी महाराज ही समाप्त कर सकते हैं। अतः इस वीडियो को देखने वाले सभी भाइयों और बहनों से विनम्र निवेदन है कि कृपया संत रामपाल जी महाराज जी के मंगल प्रवचन साधना चैनल पर प्रतिदिन शाम 7:30 बजे से 8.30 बजे तक देखें और संत रामपाल जी के इस अतुलनीय तत्वज्ञान को समझ कर दुनिया को एकजुट करने में मदद करें तभी धरती पर स्वर्ग समान सुख ,शांति और सुरक्षा का माहौल बनेगा।